ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
सिद्धांतों की व्यर्थता
अब वे धमकी देने लगे हैं कि हम सिद्धांत और कार्यक्रम की राजनीति करेंगे। वे सभी जिनसे कहा जाता है कि सिद्धांत और कार्यक्रम बताओ। ज्योति बसु पूछते थे, नंबूदरीपाद पूछते थे। मगर वे बताते नहीं थे। हम लोगों को सिद्धांत के बारे में पिछले चालीस सालों से सुनते-सुनते इतनी एलर्जी हो गई कि हमें उसमें दाल में काला नजर आता है। जब कोई नया मुख्यमंत्री कहता है कि मैं स्वच्छ प्रशासन दूँगा तब हमें घबडाहट होती है। भगवान, अब क्या होगा? ये तो स्वच्छ प्रशासन देने पर तुले हैं। स्वच्छ प्रशासन के मारे हम लोगों की किस्मत में कब तक स्वच्छ प्रशासन लिखा रहेगा।
हमारे देश में सबसे आसान काम आदर्शवाद बघारना है और फिर घटिया से घटिया उपयोगितावादी की तरह व्यवहार करना है। कई सदियों से हमारे देश के आदमी की प्रवृत्ति बनाई गई है अपने को आदर्शवादी घोषित करने, त्यागी घोषित करने की। पैसा जोडना त्याग की घोषणा के साथ ही शुरू होता है। स्वाधीनता संग्राम के सालों में गाँधीजी के प्रभाव से आदर्शवादिता और त्याग राजनीतिकर्ता को शोभा देने लगे थे। वे वर्ष आदर्श और त्याग के थे भी। मगर सत्ता की राजनीति एक ठोस व्यवहारिक चीज है।
विश्वनाथ प्रतापसिंह के साथ निकले लोगों और पहले से बाहर लोगों ने 'जनमोर्चा' बनाया था। ये लोग आदर्शवाद के मूड के थे। विश्वनाथ प्रताप को आदर्शवाद का नशा आ गया था। मोर्चे के नेता की हैसियत से उन्होंने घोषणा की कि मोर्चे का कोई सदस्य पाँच साल तक कोई पद नहीं लेगा। सब त्यागी हो गए। हमें तब लगा कि आगे चुनाव के बाद अगर ये जीत गए तो पद लेने के लिए इन्हें मनाना पड़ेगा। हाथ जोड़ना पड़ेगा कि आप मुख्यमंत्री बन जाइए और वह कहेगा हटो - मैं पदलोलुप नहीं हूँ। मैं नहीं बनूँगा मुख्यमंत्री। तब मत्रिमंडल कैसे बनेंगे? कोई मंत्री बनने को तैयार नहीं होगा। देश शासक विहीन होने की स्थिति में आ जाएगा। तब हमें इन नेताओं के दरवाजों पर सत्याग्रह करना पड़ेगा, आमरण अनशन करना पड़ेगा कि आप मंत्री नहीं होंगे, तो हम प्राण दे देंगे। तब कहीं ये पद ग्रहण को तैयार होंगे।
मगर अभी जो आपसी कशमकश चल रही है वह पदों के लिए ही है। समाजवादी दल बनना तय है तो उसमें त्यागी लोग अपनी सीट पक्की कर लेना चाहते हैं। सबसे बड़ी लड़ाई सबसे ऊँचे पद प्रधानमंत्री के लिए है। देवीलाल ने घोषणा कर दी और एन. टी. रामाराव ने समर्थन कर दिया कि विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री होंगे। इस पर चंद्रशेखर और बहुगुणा को एतराज है। दोनों विश्वनाथ को अपना नेता नहीं मानते। एन. टी. रामाराव का कोई सिद्धांत नहीं है। रूपक सजाना कोई सिद्धांत नहीं। चावल सस्ता तीन रुपए किलो कर देंगे, अगर वोट हमें दिए - यह कोई सिद्धांत नहीं है।
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