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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

क्रांति के संबंध में अभी यहाँ नहीं लिखूँगा क्योंकि इसके लिए अलग से लेख चाहिए। मैं दो बातें कहना चाहता हूँ अंग्रेज लेखक एडमंड बर्क ने इस बात की निंदा की कि रानी को मारा गया, वह स्त्री थी केवल इस कारण उसके प्राण नहीं लेना था। दूसरे लेखक स्टीफन ज्विंग का कहना है कि मेरी एन्टाइनेट राजवंश की नहीं थी। उसके खून में राजरक्त नहीं था। इसलिए उसमें वह गरिमा व समझ नहीं थी जो रानी में होती थी। वह अधिक से अधिक उच्च मध्यम वर्ग की संपन्न लड़की थी, संयोग से रानी बना दी गई, नतीजा यह हुआ कि उसका दिमाग खराब हो गया वह सिरफिरी हो गई। वह रानी होने का अर्थ शक्ति का प्रतीक मानती थी और कूर थी। ये सब बुराइयाँ उसके परिवार में छोटेपन, ओछेपन, छुद्रता, कूरता के रूप में थीं।

साहित्य में सुप्रसिद्ध महिलाओं में एक अंग्रेज महिला है जो भारतीय ही हो गई थी। देश में शायद ही कोई हो जो इस महिला का नाम न जानता हो। ये थीं श्रीमती एनी बेसेंट। यह असाधारण महिला ब्रिटेन के एक संभ्रांत परिवार की थीं। विवाहित भी थीं। वे साहित्य, दर्शन, मनुष्य की नियति इत्यादि में बहुत रुचि लेती थीं। वे परम बौद्धिक और दार्शनिक रुचियों की थीं। इसके साथ ही वे मनुष्य के वर्तमान और भविष्य के संबंध में रुचि लेती थीं।

ऐनी बेसेंट विचारों से प्रगतिशील थीं। वे ब्रिटिश फेबियन सोसायटी की सदस्य थीं। फेबियन सोसायटी ब्रिटेन के प्रगतिशील चिंतकों, लेखकों, जनसेवियों, दार्शनिकों आदि का एक क्लब सरीखा था। इसमें इतिहासकार - एच. जी. वेल्स, लेखक बर्नार्ड शॉ, एनी बेसेंट जैसे लोग थे।

फेबियन लोग अपने को समाजवादी कहते थे। समाजवाद कई प्रकार का होता है। कार्ल मार्क्स के पहले और उनके बाद भी कई तरह के समाजवाद चलते रहे। सोसायटी के सदस्य अपने समाजवाद को सोशलिज्म कहते थे। फेबियन लोगों में सबसे प्रखर और सबसे अधिक बोलनेवाले लेखक जार्ज बर्नार्ड शॉ थे। वे लंबे-लंबे क्रांतिकारी भाषण देते थे। नए-नए शब्दों को प्रयोग करते थे। उनकी अंग्रेजी बड़ी कठिन और चमत्कारी होती थी। लोग उनकी बुद्धि से दब जाते थे। श्रीमती ऐनी बेसेंट एक सक्रिय फेबियन थीं। वे समाजवाद पर लंबे भाषण देने की अपेक्षा सड़क पर संघर्ष करने की समर्थक थीं। बर्नार्ड शॉ सुंदर नहीं थे पर उनकी वाणी सुंदर थी। तब हम भी बर्नार्ड शॉ के लेखन से बेहद प्रभावित थे। मुझे तो उनके सैकड़ों मुहावरे याद हो गए थे। उनके इस शाब्दिक मायाजाल से ऐनी बेसेंट उनके प्रति आकर्षित होती गईं। यह आकर्षण प्रेम की मंजिल पर पहुँचने लगा था। ऐनी बेसेंट तलाक देकर बर्नार्ड शॉ से शादी करने को राजी हो गई थीं। इस भोली और ईमानदार स्त्री को पता नहीं था कि बर्नार्ड शॉ का पूरा व्यक्तित्व ही शब्दों का मायाजाल था। चिंतन, दर्शन, अटपटे विचार और विस्फोटक भाषा के इस देवता के मायाजाल में लोग उलझते थे। मैं, जैसा मैंने ऊपर लिखा बर्नार्ड शॉ का भक्त हो गया था। जवाहरलाल नेहरू भी उनसे बहुत प्रभावित थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू तब उनसे प्रभावित हो गए थे और प्रधानमंत्री होने के बाद उनसे मिलने उनके घर गए थे।

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