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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

सूरदास ने कृष्ण और राधा के पहले मिलन पर लिखा था-

'चतुर चतुर की भेंट भई।’

यहाँ ग्रीस में इन दो चतुरों में पैंतरेबाजी चलने लगी। जैकलिन सोचती रहती कि उसे इतने डॉलर मिलेंगे पर ओनासिस कुछ और सोच रहा था। उसने दो वसीयतनामे बनाए। उसने अपनी बेटी को बहुत पैसा दिया और जैकलिन को कम। किस्सा यों आगे बढ़ा कि जैकलिन अमरीका लौट आई और एक प्रकाशन में यहाँ संपादिका हो गई। कैनेडी की हत्या का रहस्य अभी तक नहीं खुला है। नई-नई बातें निकलती जाती हैं और यह निश्चित नहीं है कि किन लोगों ने कैनेडी की हत्या का षडयंत्र रचा।

फ्रांस की क्रांति के समय जो स्त्री सबसे ज्यादा बदनाम हुई उसके खिलाफ नारे लगाए गए, जो अपने मूर्ख वाक्यों से और उत्तेजना पैदा करती थी, गैर जिम्मेदार और सहानुभूतिहीन थी, वह स्त्री कोई और नहीं फ्रांस के अंतिम लुई चौदहवें की रानी मेरी एनटाइनेट थी, इसका नाम घृणित हो गया था। यह अपने पति और बेटे के साथ महल में बंद रहती थी और ऐश करती थी। फ्रांस की हालत क्या थी, इसे पता नहीं था। सारे फ्रांस में भुखमरी फैली हुई थी। पर मेरी को पता न होने दिया गया। किसी दरबारी ने उससे कहा फ्रांस में रोटी नहीं है, रानी ने जवाब दिया अगर रोटी नहीं मिलती तो लोग केक क्यों नहीं खाते। हो सकता है इसके बारे में कुछ बातें बढ़ाई गईं हो और झूठ भी हो पर वह एक जिम्मेदार रानी नहीं थी। जिसे अपने देश के बारे में सामान्य जानकारी भी न हो वह कैसी रानी। राजा लुई चौदहवाँ भी अहंकारी व मूर्ख था। वह किसी की कोई फरियाद सुनने को तैयार नहीं था, उधर क्रांति की आग भड़क रही थी। रूसो के विचारों से प्रेरित फ्रांसीसियों के क्रांतिकारी संगठन क्रांति की मशाल लिए थे। फ्रांस के लेखकों ने भी क्रांति को बढावा देने के लिए बहुत लिखा पर राजमहल के भीतर इस क्रांति की शायद कोई गूँज नहीं थी। क्रांतिकारियों ने राजमहल तोड़कर राजा रानी और उनके बेटे को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें एक पालकी में सजाकर बिठाया गया और लोग भूखे नहीं थे, मेरी इन्टाइनेट ने कहा था कि पेरिस में रोटी नहीं मिलती तो लोग 'केक्स' क्यों नहीं खाते तो क्रांतिकारियों ने कहा कि राजा, राजा नहीं ब्रेड बनानेवाले होते। नारे देने लगे हम बेकर, बेकर की बीवी, बेकर के बेटे को ला रहे हैं। पूरे पेरिस में उनका जुलूस निकाला और अपमानित किया और जेल में डाला और तीनों को गिलोटीन कर दिया। गिलोटीन करना याने प्राणदंड देना। फ्रांस में एक पद्धति का फँदा नहीं डालते थे। दंड पानेवाले की गर्दन जमीन पर रखकर एक लकड़ी के मजबूत टुकड़े पर रखी जाती। इस यंत्र में दोनों तरफ पतले खम्भे थे जिनमें जंजीर थी और जंजीर से लटका था एक भयानक 'ब्लेड' याने कुल्हाड़ा। यह बहुत वजनदार होता था। जंजीर खींचने पर यह गर्दन पर गिरता और उसे काट देता था। इस पद्धति को गिलोटीन करना कहते थे, और यंत्र को गिलोटींडा। क्रांतिकारियों ने खुशी में इसका नाम रख दिया था संत गिलोटीन।

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