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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

पर अब बर्नार्ड शॉ शब्दों के मोहक जाल लगते हैं। उनके नाटक लगभग नहीं खेले जाते। जबकि शेक्सपियर के नाटक 200 साल में नए-नए प्रयोगों के साथ खेले जाते हैं। बर्नार्ड शॉ तो शेक्सपियर को बहुत घटिया लेखक मानते थे। ऐनी बेसेंट सक्रियता में विश्वास करती थीं। वे साहित्यक, दर्शन, इतिहास आदि में पंडित थी। वे सच्ची स्त्री विश्व की मुक्ति के लिए कार्य करना चाहती थीं। उनके स्वभाव में दार्शनिकता थी। वे बहुत संवेदनशील थीं। बर्नार्ड शॉ और ऐनी बेसेंट के बीच कुछ घटनाएँ घट जाती थीं जो उन्हें दूर ले जाती थीं। बर्नार्ड शॉ ने शादी का जो इकरारनामा बनाया उसमें स्त्री को कोई अधिकार नहीं था वह एक गुलाम सरीखी थी। उनके लिए बर्नार्ड शॉ ने पर्दा भी जरूरी रखा जैसे वह कोई अरब दकियानूस हों। स्त्री के लिए कई बंधन थे। बर्नार्ड शॉ स्त्री के अपने व्यक्तित्व को मानते ही नहीं थे। ऐनी बेसेंट ने जब इसे पढ़ा तो चकित रह गई। उन्हें आभास हुआ कि मानवाधिकार की कितने जोरदार शब्दों में वकालत करनेवाला ऐसा दकियानूस निकला। प्रगतिशील समाज में सबसे बढ़कर भाषण देनेवाला ऐसा पुरातनपंथी निकला। हो सकता है कि बर्नार्ड शॉ ने मजाक में वैसा लिख दिया हो पर ऐनी बेसेंट को आघात लगा। उन्होंने पूछा - इन विश्वासों के आदमी से कैसे पटेगी।

एक बार फेबियन पार्टी ने मजदूरों की चालू हड़ताल के समर्थन में एक दिन जुलूस निकालने का तय किया। इसके पक्ष में सबसे उग्र भाषण देनेवाले बर्नार्ड शॉ थे। जुलूस निकला बर्नार्ड शॉ और ऐनी बेसेंट साथ-साथ चल रहे थे। नारे लग रहे थे। तभी पुलिस ने 'बेटन' चार्ज कर दिया 'बेटन' एक छोटा सा डंडा सरीखा होता है जो पुलिस डराने के लिए ज्यादा रखती है। 'बेटन' से ऐनी बेसेंट को सिर में चोट लग गई और खून निकलने लगा। उन्होंने आसपास बर्नार्ड शॉ को देखा मगर बर्नार्ड शॉ तो पहले ही भाग चुके थे। ऐनी बेसेंट को बहुत बुरा लगा। वह शाम को उनके घर गईं, रोई और गुस्से में कहा - तुम जुलूस से भाग गए, इतना डरते हो, तुम कायर हो। बर्नार्ड शॉ ने कहा - बेवकूफ होने से कायर होना अच्छा है। चोट खाई ऐनी बेसेंट के लिए यह चोट अधिक गहरी थी इसने प्रेम संबंधों को नष्ट कर दिया। ऐनी बेसेंट दृढ़ इच्छाशक्ति की धनी थी उन्होंने भारतीय दर्शन का अध्ययन किया था। भारत के प्रति उसका विशेष लगाव था। वह भारत आ गई और शांति निकेतन में रवींद्रनाथ ठाकुर के पास पहुँच गई। रवींद्रनाथ ठाकुर ने निकेतन में ही रहते हुए उन्होंने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उस समय भारत में स्वाधीनता संग्राम चल रहा था। वह गाँधी के पास गईं और अपने को इस आंदोलन में भारतीयों के साथ डाल दिया। ऐनी बेसेंट इतनी सक्रिय और लोकप्रिय थीं कि वे एक बार अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्षा रहीं। वे भारतीय हो गई थीं। खूब लड़ाकू थीं, योग्य थीं, भारतीय लोगों को रास्ता दिखाती थीं अंग्रेजों को बहुत फटकार सुनाती थीं। गाँधीजी उन्हंो चाहते थे।

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