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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

बेला चुप हो गई। गुप्त शक्ति आनंद को उससे दूर खींचकर लिए जा रही है। बेला के लाख साधन सोचने पर भी आनंद बंबई चला गया और वह वन में अकेली बैठी अपनी मानसिक उलझनों में पड़ी रही।

वर्कशॉप में आज की थी और विष्णु सवेरे से ही घर में था। बेला बरामदे में बैठी झील का दृश्य देख रही थी। बत्तखों का एक सुंदर जोड़ा पानी चीरता हुआ धीरे-धीरे बढ़े जा रहा था। एकाएक ऊपर से किसी पक्षी ने झपट्टा मारा और दोनों अलग होकर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भागने लगीं। बेला और मोहन दोनों ने यह दृश्य देखा। मोहन के होंठों पर भोली-भाली मुस्कुराहट बेला को जैसे सांप बनकर डस गई। उसे प्रतीत हुआ जैसे मोहन ने भी उसके सुहावने जीवन पर ऐसा झपट्टा मारा है जैसा कि इस पक्षी ने बत्तखों के जोड़े पर - लंगड़ा कहीं का।

उसके मस्तिष्क में गहरी झील का पानी अपनी छाया डालने लगा। वह उठी और उसके बिल्कुल किनारे बैठकर अपने पांव ठण्डे पानी में डाल दिए।

'भाभी झील में कूद जाओ - भैया कहते थे तुम्हें खूब तैरना आता है।' मोहन ने कहा।

'कहीं डूब गई तो क्या कहोगे?'

'छी, छी, छी - कैसी बातें करती हो।'

विष्णु बाहर आया तो मोहन ने उसे तेल लाने को कहा। सवेरे की सुनहरी किरणों में वह प्रतिदिन विष्णु से शरीर पर तेल की मालिश करवाता था जिससे उसके जोड़ अच्छी तरह खुल सकें। बेला भी झट भीतर गई और तैरने का जोड़ा पहन कर बाहर आकर झील में कूद पड़ी। मोहन और विष्णु खिल-खिलाकर उत्साह से उस पानी को चीरती हुई उस मछली को देखने लगे।

विष्णु ने मोहन की पीठ पर तेल मलते हुए कहा-'तुम्हारी भाभी तो किसी मछली से कम नहीं।'

'हाँ विष्णु - और फिर पानी और हवा दोनों में रहती हैं।'

मोहन की यह बात सुनकर विष्णु हँस पड़ा और उसकी नसों को जोर-जोर से मलने लगा। बेला तैरती हुई किनारे पर आ पहुँची और धड़ बाहर निकालकर बोली- 'आओ मोहन, तुम्हें तैरना सिखाऊँ।'

मोहन की आँख भर आई जैसे वह अपनी बेबसी पर रोना चाहता हो, पर रो न सके। विष्णु ने उसके मन की दशा भांपते हुए सांत्वना देते हुए कहा-’साहस न छोड़ो - मुझे विश्वास है कि एक दिन तुम अवश्य चल-फिर सकोगे।'

बेला ने बाहर निकलकर शरीर पर पड़ा तौलिया लपेटते हुए कहा-

'साहस रखना चाहिए, आज मैं तुम्हें तैरना सिखाऊँगी।'

'मेम साहब', विष्णु ने आश्चर्य से उसका दृढ़-निश्चय देखते हुए कहा। 'हाँ विष्णु - लाओ मैं मोहन की मालिश करती हूँ - तुम जाओ काम पर देर हो रही होगी।'

'आज तो वर्कशॉप में छुट्टी है।'

'ओह - तो काम से छुट्टी करो - जाओ बस्ती में घूम-फिरकर आओ।'

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