ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'आते ही होंगे - पांच बजे वर्कशॉप बंद हो जाती है।'
बातों-ही-बातों में बेला ने बताया कि मोहन आनंद का छोटा भाई और उसका इकलौता देवर है।
इधर-उधर की बातें होती रहीं, कुछ फिल्मों की, कुछ बंबई की और कुछ सुंदर पर्वतों की।
हुमांयू ने जब घूम-फिरकर बंगले को देखा तो बोला- 'सच पूछो भाभी - तुमने दुनिया की नजरों से दूर एक नन्हीं जन्नत बना रखी है।'
'परंतु केवल अपने लिए - इतनी छोटी कि हम दोनों के अतिरिक्त तीसरा न समा सके।'
'मैं भी तो यहाँ हूँ ', मोहन बीच में बोल उठा।
'ओह! मैं तो भूल ही गई - हम तीनों के लिए।'
मकान में घूमते हुए दोनों बरामदे में आ खड़े हुए। सामने झील का दृश्य और किनारे हरी-भरी पर्वतीय माला अति सुंदर दिखाई दे रही थी। हुमायूं इस दृश्य का आँखों में रसपान करते हुए बोला- 'कितनी खूबसूरत है।'
'क्या?' चौंकते हुए बेला ने पूछा।'
'यह नजारा - गहरी नीली झील और यह खामोशी - जी चाहता है, एक कहानी लिख डालूँ फिल्म के लिए।'
'विचार तो अच्छा है - कहानी बड़ी रोमांस-भरी होगी।'
'हाँ - यदि आपने इजाजत दी तो इसकी शूटिंग भी यहीं की जाएगी।'
'परंतु एक शर्त पर।'
'वह क्या?'
'कहानी की हीरोईन का पार्ट मुझे मिले।'
उसकी बात सुनकर हुमायूं हँसने लगा और बेला उसके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी।
वह जानती थी कि किसी का भी मूल्य उनके निकटतम संबंधी नहीं बल्कि पराये ही लगा सकते हैं। आज तक उसे हुमायूं की कंपनी के मालिक के वे शब्द याद थे- 'आप हीरोईन बनें तो आसमान पर चमक सकती हैं।'
वर्कशॉप बंद होते ही आनंद सीधा घर आया। वहाँ हुमायूं को बैठे देखकर फूला न समाया। उसे गोल कमरे में बिठाकर वह सीधा आगंन की ओर आया जहाँ मोहन बैठा भैया के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। आते ही आनंद ने एक पैकेट मोहन के हाथों में देते हुए कहा-
'लो, माँ ने भिजवाया हैं।'
'क्या?'
'लड्डू, तुम्हारे लिए', प्यार से उसके कंधे को थपथपाते हुए रसोईघर की ओर बढ़ा। सामने बेला दीवार का सहारा लिए उसी को देख रही थी। आनंद मुस्कुराते हुए उसके बिल्कुल पास आकर बोला- 'बेला, शीघ्र चाय लाओ, फिर तुम्हें-’
'फिर क्या?'
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