ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
चौदह
आज खंडाला में आए आनंद को एक महीना होने को आया था। अस्पताल से उसके बाबा सीधे दोनों को खंडाला ले आए थे। पट्टियाँ खुलने पर टांग का टूटा हुआ जोड़ तो ठीक हो गया पर टांग बहुत कमजोर हो जाने से इस योग्य न हो सकी कि वह चल-फिर सके।
आनंद के अच्छे रिकॉर्ड के कारण उसे नौकरी से निकाला न गया। रायसाहब ने भी मिल-जुलकर उसके केस को दबवा दिया। फिर भी दोबारा उसे बंबई में नियुक्ति न मिली। उनकी बदली बंबई से कोई 200 मील दूर, बीनापुर हो गई।
इतनी बड़ी पोजीशन छोड़कर अब वह बीनापुर वर्कशॉप का मैनेजर बनना पसंद न करता परंतु परिस्थितियों और अपनी नव वधु के कारण जिसे वह कभी दुखी देखना न चाहता था, उसे नियुक्ति स्वीकार करनी पड़ी।
आखिर वह दिन भी आ गया। मदमाते यौवन में फिर से मादकता अंगड़ाइयाँ लेने लगी। बेला की आशाएं पूर्ण हो गईं। आज पूरे तीन महीनों बाद वह सांसारिक झमेलों से दूर आनंद की बाहों में अकेली थी। यह अवसर उसे बीनापुर की बियाबान पहाड़ियों में मिला जहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य उसे बहुत भाया।
वर्कशॉप से थोड़ी ही दूर एक झील के किनारे एकान्त में एक छोटा-सा बंगला मिला था। वह एक नया संसार बनाना चाहती थी, एक निराला संसार, उस नीलकंठ से भी दूर जो कभी-कभी आनंद के मस्तिष्क में आकर उसे भूली-बिसरी बातें याद करा देता था।
इसी निश्चय को लिए वह दिन-रात छोटे से बंगले को सजाने लगी। गोल कमरा, सोने का कमरा और खाने का - इन तीनों को उसने ऐसा सजाया जैसे किसी ने उस उजाड़ में स्वर्ग उतार दिया हो। वह अब इस छोटे से संसार में माधुर्य भरने का प्रयत्न कर रही थी जो आनंद को ऐसे जकड़कर रखे कि वह उसकी इच्छा के विपरीत एक पग भी न उठा सके।
दो महीने बीत गए और बेला का स्वप्न सत्य बन गया। आनंद सचमुच उसकी बनाई हुई इस दुनिया का मतवाला हो गया। घर के हर कोने में उसे बस एक ही तस्वीर दिखाई देती, बेला की, जिसके हर भाव, प्यार और स्वर में एक आकर्षण अनुभव होता जो आनंद को अपनी ओर खींचे जाता।
एक दिन वर्कशॉप से लौटकर उसने बेला को सूचना दी कि रात की गाड़ी से मोहन उनके पास आ रहा है।
मोहन उसका छोटा देवर था जो इगतपुरी में मिशन स्कूल में शिक्षा पाता था। बचपन में ही खेलकूद में उसकी टांग टूट गई थी और वह लंगड़ाकर चलता था। इसलिए उन्होंने उसे बोर्डिंग हाऊस में रख छोड़ा था कि लड़कों में प्रसन्न रहे।
घर पर भी उसकी बहुत आव-भगत होती। छोटा-बड़ा हर कोई उसकी इच्छा को पूरा करने का प्रयत्न करता। माँ-बाप उसे देखकर हमेशा उदास हो जाते। वे जानते थे कि इसका भविष्य अंधकारपूर्ण है इसलिए इसके भोले मन को कोई ठेस न पहुँचानी चाहिए।
यह बात आनंद ने बेला से भी कह दी कि मोहन आज पहली बार उनके पास आ रहा है - उसे यह कभी अनुभव न होने देना चाहिए कि जीवन उसके लिए बोझ बन गया है जो वह उठा न सकेगा। आनंद ने उससे यह भी कहा कि घर में अब उसे दूसरा साथी मिल जाएगा। इस पर उसके सामने तो वह मुस्करा दी पर उसके मन से यों धुआं निकलने लगा जैसे किसी जलती हुई चीज को उसने राख तले छिपा दिया हो। वह अपने जीवन में किसी का हस्तक्षेप पसंद न करती थी। मोहन दो महीने यहाँ रहेगा और उसके सुहावने जीवन में कांटे के समान खटकेगा - यह सोचकर वह मन-ही-मन खीझ उठती पर मुँह से कुछ न कह सकती।
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