ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'क्या सुंदर?' पास खड़ी बेला ने बीच में बोलते हुए पूछा।
'यह घर - नीलकंठ - काश! मैं भी एकांत में ऐसा घर बना सकता', आनंद ने संध्या की ओर देखते हुए बेला को उत्तर दिया।
'तो निःश्वास क्यों भरते हैं - एक हम भी बनवा लेंगे।'
संध्या ने अनुभव किया जैसे आनंद की यह बात बेला को नहीं भाई। अवसर को समझते हुए उसने नम्रता से कहा- 'घर की सुंदरता में क्या रखा है, सुंदरता तो मन में होनी चाहिए।'
अभी पार्टी समाप्त भी न हुई थी कि बेला और आनंद ने जाने की अनुमति चाही। उन्हें किसी और पार्टी में सम्मिलित होने जाना था।
वहाँ से दोनों सीधे कल्याण की ओर चल पड़े जहाँ हुमायूं और दूसरे साथियों ने पिकनिक का प्रोग्राम बना रखा था - एक रंगीन सभा, प्रकृति की गोद में नृत्य और संगीत-फिल्मी लोगों का निजी जीवन भी इन्हीं रंगीनियों से भरपूर रहता है। बेला को ऐसी सभाएँ बहुत प्रिय थीं।
हंसते-खेलते इन्हीं बातों में दोनों पूरी गति से उड़े जा रहे थे जैसे धरती से दूर किसी और मन-भावनी मंजिल की खोज में हों। नई गाड़ी, नई बीवी और जवान उमंगें। जब तीनों का मेल होता है तो खलबली-सी मच जाती है - यह दशा थी उसकी - मन में भावनाओं का तूफान बढ़ता गया और उसके साथ गाड़ी की गति भी।
अब वह बस्ती से बहुत दूर निकल चुके थे। गाड़ी की गति से बेला का हृदय बल्लियों उछलने लगा, आसपास भागती हुई हर वस्तु यों लगने लगी मानों उसकी कामनाओं की बारात सड़क के दोनों ओर उसके स्वागत में फूल बरसा रही है। सहसा वह उछल पड़ी और चीख निकल गई।
सामने से आते हुए ट्रक ने तेजी से मोड़ काटा। आनंद अभी संभल भी न पाया था कि दोनों एक-दूसरे को बचाते सड़क से नीचे उतरकर आपस में टकरा गए। धमाके के साथ ही आनंद ने ब्रेक लगाई परंतु गहराई न होने से गाड़ी न रुक सकी। उसने शीघ्र बेला को कूद जाने का संकेत किया, उसके साथ ट्रक एक पेड़ के साथ जा रुका और कार उलट गई। आनंद ने फुर्ती से ब्रेक छोड़ दिया और दरवाजा खोलकर जमीन पर उगी झाड़ियों को मजबूती से पकड़ लिया और गाड़ी को नीचे जाने दिया।
बोझ अधिक होने से झाड़ियाँ उखड़ गईं और वह लड़खड़ाता हुआ एक गड्ढे में जा गिरा। बेला भागी-भागी आनंद के पास आई जो पीड़ा से कराह रहा था।
ट्रक का ड्राईवर और सड़क पर काम करने वाले कुछ मजदूर भी उधर भागे। बेला ने उनकी सहायता से आनंद को खड़ा करना चाहा परंतु वह उठ सका। बेला ने अपने घुटने पर उसका सिर रख लिया और और उसके माथे पर आई चोट को अपने आंचल से साफ करने लगी। दूसरे आदमियों ने दौड़कर एक कार को रोका और आनंद को उसमें डालकर अस्पताल ले गए।
निरीक्षण हुआ तो पता चला कि आनंद की दाईं टांग में फ्रेक्चर हो गया है।
तो क्या होगा?' घबराओ नहीं, सांत्वना देते हुए डाँक्टर ने कहा और भीतर आपरेशन हॉल में चला गया। बेला ने भी भीतर आने की इच्छा प्रकट की परंतु डाक्टरों ने मनाही कर दी और एक नर्स ने उसे दफ्तर में बैठने को कहा।
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