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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'आज मंगल है?'

'नहीं सरकार आज तो शनिचर है।'

'आज ही तो पूर्णिमा है न।'

'नहीं साहब, आज तो अमावस है।'

'तो आज यह व्रत कैसा?'

आनंद का यह प्रश्न सुनकर बेला की हंसी छूट गई। विष्णु मियां-बीवी का झगड़ा देख मुँह फेरकर हंसने लगा। आनंद ने उसे शीघ्र मेम साहब के लिए खाना लाने को कहा।

'मैंने कह जो दिया कि आज मुझे भूख नहीं है।' बेला ने गंभीर स्वर में कहा।

'वह तो मैं जानता हूँ, भूखा तो मैं हूँ, तुम्हारे प्यार का-’ आनंद ने हाथ बढ़ाकर उसे खींचते हुए कहा।

'छोड़िए भी विष्णु आता होगा।'

'तो क्या हुआ?'

'जैसे कुछ हुआ ही नहीं।' उसने झुंझलाते हुए अपना हाथ छुड़ाने का व्यर्थ प्रयत्न किया।

'डरती क्यों हो - व्याह करके लाया हूँ भगा कर नहीं।'

इतने में विष्णु थाली में खाना परोसे भीतर आया। दोनों ठिठककर रह गए और एक-दूसरे से थोड़ा दूर हटने का प्रयत्न करने लगे। विष्णु ने पीठ मोड़ ली और बाहर जाने लगा। आनंद ने आवाज देकर खाना उसके हाथों से ले लिया। विष्णु के बाहर जाते ही वह बेला से बोला-'आओ मेम साहब, तुम्हारा व्रत तोड़ दूं।

'ऊँ हूँ - मेरा भी हठ है - आज न खाऊँगी।'

'तो मेरा भी यही - तुम्हें आज खिलाकर ही छोडूँगा।'

'दोनों ओर हठ आ ठहरा तो निर्णय कैसे होगा।'

'फिफ्टी-फिफ्टी।'

'अर्थात्'

'कुछ तुम झुको और कुछ-’

'आप'- बेला झट से बात पूरी करते बोली, 'आप कल पिकनिक पर अवश्य चलेंगे।'

'परंतु एक शर्त पर।'

'वह क्या?'

'तुम्हें संध्या दीदी के यहाँ चलना होगा।'

'पर कैसे - इतना थोड़ा समय और इतनी दूर।' 'मैं मैनेजर की गाड़ी माग लाऊँगा।'

'तो ठीक है किंतु अधिक समय वहाँ न ठहरेंगे।'

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