ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'मेरी समझ से क्या होता है।'
तभी द्वार पर आहट हुई और दोनों चुप हो गए। सुंदर भीतर आया।
'क्या है सुंदर - ओह यह मिस्टर आनंद - बम्बई की एक मोटर कंपनी के मैनेजर।'
'नमस्ते - शायद पुर्जा के विषय में कोई एग्रीमेंट करने आए हैं।'
'यह अपनी गाड़ी में कोई देशी पुर्जा लगाना पसंद नहीं करते - आपने जीवन-साथी भी तो 'फारेन मेक' चुना है।'
संध्या की इस बात पर सुंदर जोर से खिलखिला उठा और फिर उसे एक ओर ले जाकर उसके कानों में कोई बात कही जिसे सुनकर संध्या आनंद के पास जाते हुए बोली-'मुझे किसी आवश्यक काम से अभी जाना है - यदि समय हो तो थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए - मैं शीघ्र लौट आऊँगी।'
'फिर कभी सही - अभी मैं चलता हूँ', यह कहते हुए आनंद बाहर जाने लगा। संध्या आनंद के पास द्वार तक आई।
जब आनंद घर पहुँचा तो बेला ने सबसे पहला प्रश्न यही किया-
'कहाँ रहे इतनी देर?'
'एक मित्र से मिलने चला गया था - पर तुम भी तो अभी आई हो।'
'यह आपने कैसे जाना?'
'मेरे मन ने मुझसे कहा - क्यों झूठ है?'
'नहीं तो - मैं भी एक सहेली से मिलने गई थी।'
दोनों चुप हो गए - दोनों अपनी आत्मा के अपराधी थे। दोनों के मन में चोर थे - इसलिए एक-दूसरे से और प्रश्न करने का साहस न कर सके।
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