ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'हाँ तो?'
'मैं आज उसका प्रबंध करके आया हूँ।'
यह कहते हुए उसने जेब से नोटों का बंडल निकाला और उसके सामने रख दिया। माँ-बेटी दोनों कभी नोटों और कभी सुंदर की ओर देखने लगीं 'पूरे पाँच हजार हैं' सुंदर बोला-'माँ ने कहा है कि काम आरंभ होने के पश्चात् और दूंगी।'
'ओह! तो घरवालों से बन गई।'
'माँ से - पिताजी से नहीं - मैं अपनी ओर से भरसक प्रयत्न करूँगा कि शीघ्र हम अपने उद्देश्य में सफल हो जाएँ।'
'मुझे तुमसे यही आशा है?'
सुंदर आज बहुत प्रसन्न था। आज उसने शराब नहीं पी थी फिर भी वह किसी अज्ञात नशे में डूबा-सा था। घोर अंधेरे में हाथ-पांव मारते हुए उसकी एक किरण ने उसे मंजिल का मार्ग दिखा दिया था।
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