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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'बड़ी विचित्र बात है - इन सबके सामने मुझे अपमानित करना चाहती हो - अपनी प्रतिष्ठा का कुछ तो विचार किया होता।'

'मेरी प्रतिष्ठा तो गई - अब मैं इन्हीं का एक अंग हूँ - जो कुछ आप चाहें कह सकते हैं।'

'मुझे कुछ नहीं कहना तुमसे-’ उसने जेब से एक लिफाफा निकालकर उसके आगे फेंका और लंबे डग भरता हुआ बाहर निकल गया। वह आनंद की ओर से व्याह का निमंत्रण-पत्र था।

संध्या को उदास और चुप देखकर किसी ने कोई प्रश्न न किया। वहां से हटकर अपने-अपने स्थान पर चले आए और वह स्वयं किसी विचार में खोई धीरे-धीरे पांव उठाती चबूतरे की ओर चली गई।

संध्या ने देखा कि उस जमघट से दूर द्वार के समीप वाले स्तंभ का सहारा लिए एक आवारा युवक अकेला बैठा ताश के पत्तों से खेल रहा था, जो किसी कुटुम्ब का एक सदस्य था। संध्या कुछ सोचकर धीरे-धीरे चलती उसके सामने आ खड़ी हुई।

'यह क्या हो रहा है - मिस्टर?'

'ओह! आप।' उसने आँख उठाकर संध्या को देखा जिसके मुख पर आज क्रोध और गंभीरता के बदले सहानुभूति और प्यार झलक रहा था। 'क्या अकेले भी ताश खेली जाती है?' उसने नम्रता से पूछा।

'कभी-कभी जब मन और मस्तिष्क अलग-अलग हो जाते हैं।'

'बड़ा दर्दनाक विचार है, आखिर क्या उद्देश्य है तुम्हारा?'

'कैसा उद्देश्य?'

'अपने जीवन का - कहाँ से आए - कहाँ जाओगे - कौन सी मंजिल?'

संध्या के इस प्रश्न पर वह खिलखिलाकर हंसने लगा - संध्या ने अनुभव किया कि इस दार्शनिक के मस्तिष्क के पेंच ढीले हैं - आज संध्या को उस पर तरस आ रहा था - आखिर वह अपने जीवन को क्यों व्यर्थ गंवा रहा है।

'तुम्हारा नाम क्या है?'

'सुंदर।'

'सुंदर - बहुत सुंदर - तुम सराय में कैसे आए?'

'भाग्य खींच लाया-' वह संध्या के पास बैठते, हुए बोला।

'इसमें भाग्य का क्या दोष - तुम आए तो अपनी ही इच्छा से।'

'ठीक है - मन, मस्तिष्क और पांव सब स्वयं ही लाते हैं परंतु इनके पीछे भाग्य की एक अज्ञात शक्ति इंसान को उस ओर खींचती है।'

संध्या ने उसकी बातों से अनुमान लगाया कि यह युवक केवल आवारा या शराबी नहीं बल्कि असाधारण दिमाग का मालिक है जो किसी मानसिक उलझाव के कारण जीवन को नष्ट किए जा रहा है। उसे उसकी बातों से यह भी पता चला कि वह बी.ए. पास है और एक ऊँचे अमीर घराने का इकलौता दीपक है जो किसी झगड़े और हठ के कारण घर-बार छोड़कर आया है और उसने वापस न लौटने की सौगंध खा रखी है। उसेकी बातों से स्पष्ट था कि वह छल और कपट से घृणा करता है और सच बोलता है।

'तुम्हें एक सहारे की आवश्यकता है कहाँ - वह शांति किसके पास है जिसकी मुझे खोज है।'

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