लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास


दस

आकाश पर आज कुछ अधिक लालिमा थी - रात भर की जलती हुई बत्तियाँ धीरे-धीरे बुझ रही थीं। बम्बई की सुनसान सड़कों पर लोगों की चहल-पहल आरंभ हो रही थी। समुद्र के जल से उठी सलोनी धुंध ऊँची-ऊँची इमारतों पर हल्की-सी लकीर बनाए जा रही थी।

आज वह बहुत दिनों बाद रायसाहब के घर की ओर जा रही थी। वह अब इसे अपना घर कहते हुए भी घबराती थी। रायसाहब और मालकिन का स्नेह अब उसे सपना सा अनुभव होने लगा। बेला का विचार आते ही वह अज्ञात भय से कांप जाती। फिर भी साहस बटोरकर वह आज उसी घर में जा रही थी - उस व्यक्ति की भांति जो बार-बार निराशा का सामना करके भी भगवान के मंदिर को नहीं छोड़ता और उसी की शरण लेता है।

फाटक के पास पहुँचकर वह रुक गई। उसने दृष्टि घुमाकर कोठी के बाग को देखा। फूल, पौधे, क्यारियां सब वैसी ही थीं पर उसे लगा जैसे सब उससे रुठ गए हों। प्रभात की शीतल वायु के झोंकों ने उसकी पलकों में छिपे आँसुओं को स्पष्ट कर दिया।

उसके भारी पाँव कठिनाई से उठ रहे थे। वह सामने के गोल कमरे में जाने के बदले पिछले बरामदे में रायसाहब के कमरे की पिछली खिड़की पर जा ठहरी। खिड़की का एक किवाड़ खुला था। उसने चोर दृष्टि से भीतर झांका। रायसाहब मेज पर बैठे कुछ लिख रहे थे। पहले तो उसने चाहा कि द्वार खटखटाए पर फिर इसे उचित न जानकर उल्टे पांव गोल कमरे की ओर लौटी और भीतर आ गई।

वहां कोई न था। वह दबे पांव रायसाहब के कमरे तक जा पहुँची और उनकी कुर्सी के पीछे खड़े होकर उनके देखने की प्रतीक्षा करने लगी।

किसी को अपने पीछे खड़ा अनुभव कर जैसे ही रायसाहब ने घूमकर देखा तो आश्चर्य और प्रसन्नता से वह उछल पड़े। संध्या ने देखा कि उनकी आँखों में आँसू झलक रहे थे। उन्होंने कांपते हाथों से कलम मेज पर रख दी और बढ़कर संध्या को अपने सीने से लगा लिया।

'पापा - ये आंसू कैसे?' संध्या ने संभलते हुए कहा।

'नहीं तो-’ उन्होंने आसू पोंछते हुए कहा-'जानती हो मैं तुम्हारा ही नाम लिख रहा था।'

'किस पर?'

उन्होंने कांपते हाथों से मेज पर से लिफाफा उठाया और उसकी ओर बढ़ा दिया।

'यह क्या?'

'ब्याह पर आने का न्यौता - इस पहली को तुम्हारी बेला का ब्याह है।' 'व्याह - उसके कांपते होंठों से धीरे से निकला और धड़कते दिल से उसने लिफाफा खोला।

निमंत्रण पत्र पढ़ते ही उसकी आँखों में आंसू भर आए, पर अधिकार से काम लेते हुए वह उन्हें पी गई और मुस्कराकर बोली-

'पापा - बधाई हो - मैं अवश्य आऊँगी - आपकी बेला के व्याह पर।'

'पगली - तुम्हारी भी तो छोटी बहन है।'

'हाँ-हाँ, पापा मैं कभी उसके अधिकार भूल सकती हूँ', उसने पापा को सांत्वना देते हुए कहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai