ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
सब आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे जैसे किसी ने विचित्र और अनहोनी बात कह दी हो। वे सब आपस में खुसर-फुसर करने लगे - मौन एक समझ न आने वाले अधूरी रागिनी में बदल गया। वह फिर बोली-
'तुम लोगों को क्या चाहिए?'
'पेट भर रोटी-’ उनमें से एक बोला।
'हाँ-हाँ दो समय रोटी। हम भी इंसान हैं।' सबने दोहराते हुए यह कहा। 'तो अपने को पहचानने का प्रयत्न करो - इंसानों की भांति जीना सीखो।' 'परंतु कैसे?' एक ने आगे बढ़ते हुए पूछा।
'इंसानियत के मार्ग पर चलकर - आओ मैं तुम सबको एक नया पथ दिखाती हूँ जहाँ रोटी, कपड़ा, मकान सबको एक समान मिलेगा - क्या तुम इस पथ पर मेरा साथ दोगे?'
'अवश्य!' हॉल लोगों की आवाज से गूंज उठा, जैसे सचमुच सबको कोई
संभालने वाला मिल गया हो।
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