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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'हाँ - खींच लो इस जुबान को इसलिए कि वह सच न बोल सके - नोच लो इन आँखों को कि वह अन्याय न देख सकें।'

संध्या की यह बात सुन नन्हें पाशा के भयानक चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वह अपने मोटे और भद्दे होठों को खोलते हुए बोला-'शाबाश! झूठ और अन्याय ये दोनों तुमको पसंद नहीं - यह जानकर हमें अत्यंत प्रसन्नता हुई परंतु इनको परखने के लिए अक्ल से काम लेना चाहिए।'

'अक्ल-सच-झूठ क्या आप मेरी परीक्षा लेने आए हैं?'

'हम क्या परीक्षा लेंगे - भाग्य स्वयं मानव की परीक्षा है।'

'किंतु मुझे किसी के भाषण की आवश्यकता नहीं।'

'तो तुम यहाँ क्या करने आई हो?'

संध्या निरुत्तर हो गई और विस्फारित दृष्टि से पाशा को देखने लगी जिसने ऐसा प्रश्न किया था। आखिर वह किस उद्देश्य से यहाँ आई है - किस निश्चय से वह इस भयानक स्थान पर चली आई - क्या माँ के साथ अब उसे भी ऐसा ही जीवन काटना होगा - लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे - वह ऐसी ही बातें सोचे जा रही थी। उसकी जबान पर मानों किसी ने ताला लगा दिया हो। नन्हें पाशा के शब्दों ने फिर मौन भंग कर दिया। वह कह रहा था-

'मैं जानता हूँ तुम यहाँ क्यों आई हो - अपनी दुखिया माँ को वेश्या कहने - उसकी निर्धनता का उपहास उड़ाने - उसकी वर्षों की दबी हुई आशाओं को जगाने - उसके पुराने घावों को कुरेदने', वह क्षण भर साँस लेने के लिए रुक गया और फिर कहने लगा-’इसलिए कि तुम पढ़ी-लिखी हो - अच्छे वस्त्र पहनती हो -- साफ-सुथरे वातावरण में पली हो - भाग्य ने तुम्हारे पांवों में फूल बिछाए हैं कांटे नहीं - परंतु यह अधिकार तुम्हें किसने दिया कि आकर किसी की शांति भंग करो - उसकी आशाओं को लूटो - बिना सोचे-समझे किसी निर्दोष को आकर वेश्या कह दो, यही तुम्हारी शिक्षा है - यही तुम्हारा सभ्य वातावरण कहता है -- यही तुम्हारे धन का घमंड है - हम जानते हैं कि तुम हमारे सुंदर संसार में बसती हो परंतु हम भी एक सुंदरता रखते हैं - हमारा भी अपना सुनहरा संसार है। अपने मन का संसार - वह वस्तु जो तुम लोगों के पास नहीं' - कमरे में मौन छा गया, संध्या स्थिर बनी खड़ी थी - नन्हें पाशा का हर शब्द उसके मस्तिष्क पर हथौड़े की-सी चोट लगा रहा था।

वह पागलों की भांति बढ़ी और अपनी माँ के गले से लिपट गई - दोनों रो रही थीं।

नन्हें पाशा ने दोनों को एक-दूसरे की बाहों में देखा तो उसकी आँखों की कोरों में दो मोती-से टिमटिमाए जिन्हें वह गिरने से पहले ही पी गया।

जब उसे पता चला कि नन्हें पाशा उसका मामा है तो बहुत प्रसन्न हुई और अपने कहे हुए शब्दों पर पछताने लगी। लड़ाई में बेचारे की एक आँख और एक टांग चली गई और अब जीवनयापन के लिए वह सराय चला रहा है - वह सराय उसकी पैतृक संपत्ति थी - इस भयानक चेहरे के नीचे वह एक प्यार-भरा दिल रखता है इसलिए सब उसे नन्हें पाशा कहते हैं। इस हालत को जानकर संध्या की घृणा सहानुभूति में बदलने लगी।

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