ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'तो सुनो, मुझे सदा के लिए भूल जाओ।'
'यह आप क्या कह रहे हैं?' संध्या और पास आकर बोली।
'ठीक ही कह रहा हूँ - मेरा प्रेम धोखा ही था, उसकी लपेट में मैं तुम्हारे पवित्र प्रेम को नहीं लेना चाहता।'
'यह क्या कह रहे हैं? आप कहीं-’
'मन छोटा न करो। संसार बहुत बड़ा है - हमारे विचारों से भी बहुत बड़ा - और कोई आसरा ढूंढ लो जहाँ तुम्हें सुख और शांति मिल सके - मुझे एक खाली और झूठा समझकर सदा के लिए बिसार दो।'
आनंद की बातों में आज एक दृढ़ता थी - ये सब बातें उसने बिना रुके एक ही साँस में कह डालीं और संध्या की बात सुने बिना गाड़ी स्टार्ट कर दी। एक झटका लगा और वह लड़खड़ाते हुए बची। एक शोर हुआ और घंटी की आवाज वातावरण में गूंजने लगी - दूर एक सड़क पर फायरब्रिगेड का इंजन कहीं तेजी से जा रहा था - कहीं आग लग गई थी - संध्या के मन में भी आग सुलग रही थी जिसे उसके अतिरिक्त और कोई अनुभव न कर सका - आनंद के ये शब्द अभी तक उसके कानों में गूंज रहे थे - संसार बहुत बड़ा है - हमारे-तुम्हारे विचारों से भी बहुत बड़ा - ये लंबी-चौड़ी सड़कें, बड़ी-बड़ी इमारतें, गाड़ियाँ, लाखों करोड़ों की भीड़ पर इन सबमें एक व्यक्ति भी ऐसा न था जो शांति न दे सकता।
कल्पना में बढ़ती हुई वह उस सराय में जा पहुँची जहाँ उसकी माँ फटे- पुराने कपड़े पहने लोगों को कहवा पिला रही थी। वह एक आंतरिक भय से कांप उठी और बेअख्तियार भीतर की ओर भागी।
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