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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'ठीक है, ऐसा ही होगा-’ यह कहते हुए उसने तकिए के नीचे से एक छोटी-सी शीशी निकाली और उसका ढक्कन खोलकर मुख की ओर ले जाने लगी।

'यह क्या?' आनंद एकाएक उसके पास आकर बोला।

'विष-मेरा अंतिम साधन-’

'तुम पागल हो? कभी ऐसा भी किया जाता है।'

'अभी आप ही तो कह रहे थे कि विष खाकर आत्महत्या कर लूँ।' 'कह रहा था क्रोध में आकर - उठो मूर्ख न बनो - वास्तविकता को समझने का प्रयत्न करो - मैं तुम्हारे लिए अपने से बढ़कर धनी, सुंदर और भला वर ढूंढ दूंगा - यह प्रेम केवल मायाजाल है।'

'बालकों की भांति बहला रहे हैं मुझे।'

'हाँ, तुम बालिका ही तो हो वरना तुम्हारी भूलें इतनी शीघ्र क्षमा क्यों कर देता - उठो, मेरी अच्छी बेला!' आनंद ने प्यार से उसका हाथ पकड़ा और उसे उठाने लगा।

'आनंद!'

'क्या?'

'तुम मुझे बच्चा समझते हो, परंतु जानते हो मैं क्या हूँ?'

'क्या हो?'

'एक डूबती हुई नाव - मुझे तुम्हारे सहारे की आवश्यकता है।' वह उससे लिपटते हुए बोली-'मैं अब बच्ची नहीं - तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।' 'बेला!' उसे झटके से अलग करते हुए आनंद चिल्लाया, नहीं - यह झूठ है - यह कभी नहीं हो सकता।'

'नहीं - आनंद यदि ऐसी बात न होती तो मैं संध्या और तुम्हारे बीच में दीवार खड़ी करने का प्रयास न करती।'

'नहीं, नहीं-यह तुम क्या कह रही हो-’

'देखो यह सब-’ उसने पर्स खोलकर दो-चार छोटी-सी शीशियाँ निकालीं और आनंद को दिखाते हुए बोली-'ये मेरी मृत्यु के चिह्न हैं। तुम्हारा एक छोटा-सा निर्णय मेरे जीवन या मृत्यु का कारण बन सकता है।'

आनंद ने कोई उत्तर न दिया। उसकी आँखों में भय स्पष्ट था। वह कांपते हुए उठा और बाहर चला आया। बेला ने एक-दो बार पुकारा भी, पर उसने कोई ध्यान न दिया।

नीचे गोल कमरे में रायसाहब और मालकिन उत्साहपूर्वक उसकी ओर बड़े, पर उसके मुख पर चिंता के गहरे चिह्न देखकर कोई प्रश्न न कर सके। आनंद बिना रुके लंबे-लंबे डग भरता बाहर निकल गया। रायसाहब विस्मित से मूर्ति बने खड़े रहे। संध्या रायसाहब के संकेत पर उसके पीछे हो ली।

आनंद अभी गाड़ी स्टार्ट कर ही पाया था कि संध्या ने पहुँचकर कहा-’बिन मिले और बिना कुछ कहे जा रहे हो।'

'संध्या?' जी-

'तुम्हें मेरे निर्णय की प्रतीक्षा थी न।' जी...।

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