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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'बेला ने- और पापा मुझसे साफ-साफ कहिए वरना मैं चैन से न बैठ सकूंगी।' उसकी आँखों में झलकते आंसू देखकर वह सटपटा उठे। यह रहस्य बेला किस प्रकार जान पाई! जैसे ही उसकी आँखें मालकिन से मिलीं और वह बोल उठीं-

'हाँ, यह उसी की शरारत है।'

'कैसे?'

'सर्टीफिकेट ढूँढने को चाबी जो ले गई थी।'

यह सुनते ही रायसाहब मालकिन पर बरस पड़े। आज तक ऐसी भूल उनसे कभी न हुई थी। दोनों में क्रोध को देख संध्या जान गई थी कि दाल में अवश्य कुछ काला है। अब उसने फिर यह जानने की प्रार्थना की तो वह ऊँचे स्वर में चिल्लाए-'क्या कहा उसने?'

'कि तुम हमारे टुकड़ों पर पलती हो।'

'उसकी यह मजाल - बेला!' वह क्रोध में चिल्लाए। बेला जो पर्दे के पीछे खड़ी उनकी बातें सुन रही थी, डरते-डरते भीतर आई। रायसाहब उसे बुरा-भला कहने लगे।

बेला ने चालाकी से काम लिया और दीदी से लिपटकर क्षमा मांगने लगी और फिर रोते हुए अपने कमरे में चली गई।

संध्या ने अपनी हठ न छोड़ी तो विशेषत: रायसाहब को प्रकट करना पड़ा कि वह उनकी लड़की नहीं है। उन्होंने अधिक समय तक संतान न होने के कारण उसे गोद ले लिया था परंतु बाद में रेनु और बेला का जन्म हो गया फिर भी उन्होंने उसे अपने बच्चों से भी अधिक प्यार से रखा। उसे वह हर वस्तु दी जो माता-पिता अपनी संतान को दे सकते हैं।

'परंतु मेरे माता-पिता कौन हैं?' वह फिर पूछ बैठी।

'यह जानकर तुम्हें क्या लेना है?'

'मन की सांत्वना - आप कह डालिए।'

'तुम्हारे पिता का देहान्त हो चुका है।'

'और मेरी माता।'

'मुझे कुछ ज्ञान नहीं - हमारे दफ्तर के हैड क्लर्क रलियाराम उन्हें जानते हैं।

'तो क्या वह भी-’

'सुना है अभी जीवित हैं परंतु तुम क्या करोगी यह सब जानकर - जन्म तुम्हें उन्होंने दिया है, पर तुम बेटी हमारी हो - समझदार हो, सयानी हो, ऐसी बातों को मन में लेकर क्या करोगी। इस घर में क्या अभाव है, कौन सी आवश्यकता है हमारी बेटी की जो पूरी नहीं हुई?'

वह चुपचाप माँ के बिस्तर पर लेट गई। उसने रायसाहब या मालकिन से इस विषय में और कुछ न पूछा - वह पूछती भी क्या? भेद था जो वर्षों पश्चात् प्रकट हुआ - वह अपने आपको सबसे पृथक समझने लगी।

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