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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

उसी रात दोनों को अलग होना पडा। आनंद ने उसे पूना की गाड़ी पर चढ़ा दिया और गाड़ी छूटने से पूर्व उनमें केवल यह बातचीत हुई-

'बेला' - नीची दृष्टि किए हुए धीरे से उसने पूछा।

'हूँ!' उसने असावधानी से उत्तर दिया।

'तुम खंडाला में आई हो और जो कुछ यहां बीता उसका किसी से वर्णन तो न करोगी?'

'किसलिए?' उसके होंठों पर एक चपल मुस्कान थी।

'इसी में सबकी भलाई है - तुम्हारी-मेरी-और-’

'और किसकी? रुक क्यों गए?' बात पूरी करते हुए बेला ने कहा।

'तुम्हारी दीदी की - तुम तो जानती हो हम दोनों का विवाह होने वाला है।' आनंद के मुँह से संध्या की बात सुनते ही बेला के तन-बदन में आग-सी लग गई। परंतु अधिकार से काम लेते हुए वह खिलखिलाकर हँसने लगी। आनंद उसकी इस हँसी पर डर-सा गया और बोला-

'वचन दो कि यह रहस्य ही रहेगा।'

'परंतु एक बात पर।'

'क्या?'

'कि तुम मेरी आशाओं को कभी ठेस नहीं पहुँचाओगे।'

'पूरा प्रयत्न करूँगा।'

'और हाँ-'

'क्या?'

'यदि मुझ पर विश्वास हो तो कुछ दिन के लिए कैमरा दे दो।'

'परंतु फिल्म-’

'मैं धुलवा लूँगी - शीघ्रता में अपना न ला सकी - वहां आवश्यकता पड़ेगी।' आनंद ने जैसे ही कैमरा उतारकर बेला के हाथ में दिया, गाड़ी ने सीटी दी और वह अपना बेजान सा हाथ उसे विदा करने को हिलाता रहा किंतु उसका मन और मस्तिष्क कहीं और थे।

सामने प्लेटफॉर्म की घड़ी शाम के छह बजा रही थी। पूना से बंबई जाने वाली गाड़ी में केवल आधा घंटा शेष था और वह अपनी चिंता मिटाने के लिए प्लेटफॉर्म की दूसरी ओर बढ़ा जहाँ उसके पिता सामान लिए उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

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