ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
|
6 पाठकों को प्रिय 375 पाठक हैं |
गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'कहा था न कि फिसल जाओगी।' बेला को बाहों में लेते आनंद बोला। बेला ने अपने आपको उसकी बाहों में ढीला छोड़ दिया और बोली-'आनंद! तुमने क्या किया - मुझे नदी पर आकर प्यासा क्यों छोड़ दिया?'
'बेला क्यों सुध खोती जा रही हो - मेरी अच्छी बेला - देखो पानी का प्रवाह बहुत तेज है, शीघ्र उतर चलो - वह देखो बादल घने हुए जाते हैं - ये अब अवश्य बरसेंगे - हम तूफान में घिर जाएंगे।'
'मेरी आशाओं से खेलकर मुझे मझधार में छोड़ते हो और तूफान की सूचना देते हो - आनंद-आनंद मुझे बचाओ।'
बेला की यह दशा देख आनंद ने उसे बाहों में खींच लिया और व्याकुलता से उसे चूमने लगा - घटाएँ घनी होती चली गई और धुंध की मोटी चादर ने उन्हें लपेट लिया। चारों ओर एक अंधेरा सा छा गया, कुछ सुनाई न देता था।
इसी दशा में वह गिरते-पड़ते अनजाने मार्ग पर बढ़ने लगे। आशाएँ तीव्र हो उठीं और घाटी में गर्जन और तूफान के मध्य वे एक-दूसरे से ऐसे लगे हुए थे मानों किसी आकर्षण-शक्ति ने उन्हें एक कर दिया हो।
फिर गर्जन हुई, बिजली चमकी और वातावरण क्षण-भर के लिए जगमगा उठा। घटाएँ टकराकर बरस पड़ी, थोड़े ही समय में जल-थल एक हो गया।
झरनों का शोर आकाश में घिरे बादलों से उलझ रहा था। लगता था कि मेघ स्वयं धरती पर उतरकर क्रोध बरसा रहा हो।
धीरे-धीरे बरखा की बौछार कम होने लगी। घटाएँ कहीं दूर चली गईं और आकाश फिर से निखरने लगा। कुछ समय पश्चात् आकाश बिल्कुल खुल गया और वही दृश्य चमकने लगा जैसे कुछ हुआ ही न था।
पास ही किसी खंडहर की चट्टान पर बेला लेटी हुई थी और आनंद उसकी पीठ धीरे-धीरे थपककर उसे उठाने का प्रयत्न कर रहा था। जब कुछ देर तक वह न उठी तो आनंद अपने स्थान से उठकर खंडहर से बाहर आ गया।
थोड़े समय पश्चात् बेला अपने भीगे हुए और उलझे हुए कपड़ों को ठीक करती हुई पीछे आ गई। उसने आनंद की ओर देखा और फिर दोनों आँखें नीची करके धीरे-धीरे अपने मार्ग पर चल पड़े।
दोनों चुपचाप थे। अब उनके हाव-भाव में वह चंचलता और शोर न था।
मानों बरखा के पश्चात् वातावरण में शांति सी छा गई थी। बेला ने एक-दो बार प्रश्न पूछने का प्रयत्न भी किया किंतु आनंद ने किसी न किसी बहाने टाल दिया।
जब दोनों घर पहुँचे तो माँ ने टिफिन खोलकर देखा। खाना वैसे का वैसा रखा था। पूछने पर कोई कारण न पाकर बेचारी चुप हो रही और चाय का प्रबंध करने लगी - न जाने दोनों किस विचारधारा में खोए हुए थे।
|