ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
|
6 पाठकों को प्रिय 375 पाठक हैं |
गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
बेला ने हाथ उठाकर अपने वक्ष को और उभारा।
'ऊँ हूँ यों नहीं-’ आनंद बोला-'नेचुरल पोज में' - यों तनिक झुककर' आनंद ने दोनों हाथ उसकी कमर में डालकर उसे घुमाना चाहा। बेला ने उठी हुई दोनों बाहें उसके गले में डाल दीं और बोली-'कहो तो यों-’
आनंद ने मुस्कराकर उसके दोनों हाथ पुन: ऊपर उठा दिए। उसकी आँखों के उन्माद और वक्ष के तीखे उभार को देख आनंद किसी विचार से कांप-सा गया और शीघ्र ही परे हट उसकी तस्वीर लेने लगा।
दोनों बढ़ते-बढ़ते पहाड़ियों के ऊपर चढ़ गए और बादलों की ओट में खो गए। आनंद ने बेला की कमर में अपना हाथ डाल दिया। दोनों की आँखें एक-दूसरे से कुछ कहना चाहती थीं परंतु कह नहीं सकती थीं।
'यों लगता है जैसे धरती छोड़ आकाश में उड़े जा रहे हों।' बेला ने आनंद के पास आते हुए कहा।
'आकाश में उड़ तो जाएँगे - यदि लौट न सके तो-’ आनंद ने पूछा।
'तो क्या? वहीं रह जाएँगे - सुना है स्वर्ग भी वहीं है।'
'जहाँ हम हैं वहाँ भी तो स्वर्ग है।'
धुंध के बादल कुछ ऊपर उठे तो दृश्य साफ हो गया। दोनों एक खुले स्थान पर पहुँच गए। जहाँ से नीचे देखने पर लगता था जैसे बादल नीचे धरती पर हों और स्वयं आकाश पर।
दूर एक भयानक शोर सुनाई दे रहा था। बेला ने पूछा-'यह क्या है?' 'झरना - लोनावाला की पहाड़ियों में सबसे बड़ा झरना-’
'लोनावाला!'
'हाँ लोनावाला - अब हम खंडाला से दूर लोनावाला की सीमा में हैं। जहाँ हम खड़े हैं इसे टाईगर प्वाइंट कहते हैं।'
'तो क्या यहाँ टाईगर-शेर भी होते हैं?' बेला भय से आनंद से लिपट गई। 'हाँ बेला - शेर-बबरशेर - किंतु हमें वह कुछ नहीं कह सकते।'
'वह कैसे?'
'आओ तुम्हें दिखाऊँ-’
आनंद बेला को खींचता हुआ थोड़ा आगे ले गया और एक स्थान पर रुककर उसने बेला को धरती पर उल्टे लेट जाने को कहा। आनंद स्वयं भी बेला के पास उल्टा लेट गया और हाथ से संकेत करके बोला-
'वह देखो-क्या है?'
'धुंध के बादल छंट जाने से दृश्य स्पष्ट हो गया था। आनंद ने नीचे नदी के किनारे हाथ का संकेत किया। भूरे रंग का एक पशु वहाँ पानी पी रहा था।' आनंद बोला-
'वह देखो - शेर - विचित्र दृश्य है - न हम नीचे जा सकते हैं और न वह इस खाड़ी से बाहर आ सकता है.. इसलिए इस स्थान को टाईगर प्वाईंट का नाम दिया गया है। शिकारी यहाँ से उसका बेधड़क शिकार करते हैं परंतु अपने शिकार को बाहर नहीं ला सकते।'
वहां से दोनों सीमा के साथ-साथ झरने की ओर बढ़ने लगे। पानी का शोर और घाटी में उसकी गूंज दृश्य को बड़ा भयानक बना रहे थे। बेला को आनंद का संग इस भयानकता का न अनुभव होने देता।
|