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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

वह उसकी बात सुनकर अवाक्-सा उसकी मदभरी आँखों की ओर देखता रह गया मानों वह इन मदिरा के प्यालों से पूर्णत: रस-पान करना चाहती हो। आनंद ने बेला का हाथ पकड़ उसे अपने समीप खींचकर झटका-सा दिया और वह मछली की भांति तड़पती हुई उसकी बाहों में आ गई। दूसरे ही क्षण वह शरीर को सिकोड़कर उसकी बाहों से छटपटाकर निकल गई और बोली-’ऐसी भी क्या बेचैनी?'

'पत्थर-हृदय को मोम जो बनाना है।' आनंद उसकी ओर फिर बढ़ते बोला। बेला अंगूठा दिखा उसे चिढ़ाती हुई भाग निकली। आनंद भी उसका पीछा करने लगा - विचित्र दृश्य था - सुहावने बादलों की छाया में वह नदी के किनारे-किनारे भागी जा रही थी और आनंद उसके पीछे एक कंधे पर कैमरा और दूसरे पर टिफिन का डिब्बा लटकाए। कुछ समय बाद वह रुक गया और अपनी चाल को धीमा कर दिवा।

बेला ने जब देखा। कि उसका साथी हार मान गया है तो वह वापस लौट आई और हँसते हुए बोली-

'स्त्रियों की प्रतियोगिता में दौड भी न सके?'

आनंद चुप रहा और गंभीर सा मुँह बना उसकी ओर बढ़ता गया। पास आकर बेला ने वही बात दोहराई। आनंद ने उत्तर तो नहीं दिया बल्कि निकट आते ही झपटकर उसे आलिंगन में ले लिया मानों कोई पक्षी अपने आखेट की प्रतीक्षा में हो। बेला इस पर तिलमिला उठी और मचलते हुए बोली-

'यह धोखा है - पकड़ना था तो अपने बल से दौड़कर पकडा होता।'

'पुरुष स्त्रियों को बल से नहीं बुद्धि से पकड़ते हैं।'

आनंद ने उसे छोड़ दिया और दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े। हँसी का स्वर तैरते बादलों से टकराकर अपने पीछे एक मधुर गूँज-सी छोड़ गया।

दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़कर पुल पार करके सामने की झील की ओर चल पड़े। टिफिन का डिब्बा उन्होंने नहर के चौकीदार के पास रख दिया। तीनों ओर से पर्वतों में घिरा नीला गहरा स्वच्छ जल जो सीमेंट के ऊँचे बांध से रोका हुआ था, बड़ा सुंदर प्रतीत हो रहा था।

बेला के कहने पर आनंद ने वार्डन से मोटर-बोट ली और दोनों उस पर बैठ झील में उतर गए।

दोनों चुपचाप लहरों को देखते जा रहे थे। ज्यों-ज्यों नाव गहराई में बढ़ती आनंद को लगता जैसे वह स्वयं गहराई में उतरता जा रहा है जहाँ से उसका उभरना असंभव हो जाएगा। बेला चन्द ही क्षणों में उसके जीवन पर इतनी छा गई थी कि वह सधे हुए पक्षी की भांति उसके संकेत पर नाच रहा था। यदि यह रहस्य खुल गया तो संध्या क्या सोचेगी - संध्या का ध्यान आते ही उसे चक्कर-सा आ गया... उसे लगा जैसे झील की हर तरंग में संध्या की छाया उसे कुछ समझा रही हो। आनंद ने नाव की गति तेज कर दी।

गति तेज हो जाने से पानी के छींटे उड़-उड़कर नाव में आने लगे। बेला ने आनंद के कंधे का सहारा ले लिया और उसके हवा में उड़ते बालों को संवारने लगी। हर क्षण उसका आनंद के समीप होते जाना - उसका स्पर्श - आनंद के हृदय की धड़कन तेज हो रही थी।

दूसरे किनारे पर पहुँचकर आनंद ने नाव को तट पर लगा दिया और बेला को उतरने के लिए हाथ का सहारा दिया। जब आनंद नाव को ठीक जमा रहा था बेला ने भागकर सामने के पत्थर पर कैमरा सैट करके रख दिया और स्वयं उसकी कमर में हाथ डालकर खींचने लगी। आनंद को इसका ज्ञान तब हुआ जब तस्वीर खिंच जाने पर वह कैमरा उठाने को भागी। आनंद ने कैमरा उससे छीन लिया और उसे नाव के मध्य खड़ा करके उसकी तस्वीर उतारने लगा। बेला ने ऊँचे स्वर में पूछा-'तस्वीर किस ढंग में हो?!

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