ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'वह कैसे?'
'विवाह के पश्चात् तो नाम ले लेते हैं किंतु उसके पहले नहीं।'
'तो अभी केवल सगाई हुई है?' आनंद ने हँसते हुए कहा।
'कुछ यूं ही समझ लीजिए।'
'किंतु पता-ठिकाना तो कोई होगा ना'
'बंबई में किसी मोटर कंपनी के मैनेजर हैं।'
'मोटर कंपनी के।' आनंद ने आश्चर्य से बेला की ओर देखकर दोहराया जो एक चपल मुस्कान से उसे देख रही थी।
'हाँ हाँ मोटर कंपनी के - जनरल मोटर कंपनी के।'
अपनी फर्म का नाम सुनते ही आनंद सब बात समझ गया और चिल्लाया 'बेला!' फिर अपनी ही भूल पर लजा सा गया। बेला उसकी सूरत और अपनी सफलता पर पागलों की भांति हँसने लगी।
आनंद ने लपककर शीशा बंद कर दिया और बेला के समीप होकर बोला-'परंतु तुम यहाँ कैसे?'
'आपने वचन जो दिया था।'
'वचन-मैंने!' आश्चर्यचकित आनंद ने पूछा।
'जी हाँ, खंडाला दिखाने का - मैं स्वयं ही चली आई, इससे आपको बुरा तो नहीं लगा।'
'ओह? परंतु इतनी शीघ्र तुम-’
'शुभ कार्य में विलम्ब कैसा!' बेला उसके निकट आते हुए बोली।
'मैं समझा - परंतु घर पर!'
'कहकर आई हूँ। पर आप इस कदर घबराए हुए क्यों हैं?
'नहीं तो। फिर भी आपकी बातों पर विश्वास नहीं आता। यह अकेले।'
'हाँ, मिस्टर आनंद!' बेला एक लंबी साँस लेते हुए बोली, 'आप मेरी बातों पर विश्वास क्यों करेंगे। दीपक स्वयं पतंगे के पास चला आया।'
'दीपक-पतंगा-यह-’ आनंद बेला का संकेत समझकर घबरा-सा गया। 'एक कल्पना-कवि का एक व्यर्थ विचार-अच्छा छोड़िए इन बातों को। कहिए कल का क्या कार्यक्रम है?'
'कैसा कार्यक्रम? आनंद एक उलझन में पड़ गया।'
आनंद का उतरा हुआ मुख देखकर बेला मुस्कराई और चंचल नयनों से कुछ क्षण उसकी ओर देखती रही। फिर उसे अपनी पूना जाने की सब बात सुना दी।
आनंद को जब यह ज्ञात हुआ कि बेला शीघ्र पूना नहीं जाना चाहती बल्कि इतवार का दिन उसके साथ खंडाला में व्यतीत करना चाहती है तो वह बहुत घबराया। कहीं बेला के बचपने का दण्ड उसे न भुगतना पड़े। इस विचार ने उसे एक असमंजस में डाल दिया।
वर्षा की बौछार और गाड़ी की तीव्र गति कल्पना में वही दृश्य प्रस्तुत कर रही थी जो आनंद के हृदय की तेज धड़कन और बेला की मचलती कामनाएँ, एक विचित्र उलझाव था दोनों में।
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