लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

आने-जाने वालों का जमघट लग गया। थोड़ी ही देर में रायसाहब और उनकी धर्मपत्नी भी अपने दुर्भाग्य पर आँसू बहाते आ पहुँचे। अभी वह एक जीवन के आने की खुशी भी न कर पाए थे कि मौत ने दूसरा जीवन ले लिया। हुमायूं को जब इस घटना का पता चला तो वह भी आ पहुँचा। आनन्द से गले मिलकर रोने लगा। सुंदर और पाशा ने बतलाया कि रात लोगों को बाहर निकालते समय एक छत के गिर जाने से यह सब कुछ हुआ। उसे लाख मना किया परंतु यह अपनी हठ पर अड़ी रही। नत्थू की बीवी और बच्चे को निकालते समय यह घटना घटी।

'नत्थू की बीवी का क्या हुआ?'

'वह भी चल बसी और बच्चा भी।'

उसी समय आनन्द ने उन मजदूरों पर दृष्टि दौड़ाई, जो इस दुःख में उसका साथ दे रहे थे। नत्थू उनमें न था। शायद बीवी का शोक मना रहा था।

संध्या की चिता शाम के चार बजे जलाई गई। आकाश की ओर उठती लपटें कई घरों में आग लगा गईं। आनन्द मूर्ति बना एक और जीवन का यह भयानक पहलू देखता रहा। अग्नि की लौ में उसे संध्या की सूरत दिखाई दे रही थी। सब चले गए किंतु आनन्द मूर्ति बना उस चिता को देखता रहा। उस समय तक जब तक कि लकड़ियाँ अंगारे बनकर राख न हो गईं। सबने उसे लौट चलने को कहा किंतु वह मौन बैठा रहा। आखिर उसने कंधों पर किसी का हाथ अनुभव किया। वह झट से मुड़ा। हुमायूं उसे उठने को कह रहा था। उसने देखा कि वह वहाँ अकेला ही नहीं बल्कि रायसाहब और उनकी धर्मपत्नी भी उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसे वह अब अपने संग ले जाना चाहते थे। वह जानते थे कि यहाँ रहकर उसके मन का बोझ हल्का न होगा। हुमायूं के कहने पर वह रायसाहब के संग उनके घर चला गया।

उसी रात जब मालकिन बेला को देखने अस्पताल गईं तो उन्होंने आनन्द के अस्वस्थ होने का बहाना कर दिया। वह ऐसी दशा में उसे दीदी की मृत्यु की सूचना देना न चाहती थीं। उन्होंने और सबने भी मना कर दिया।

दो दिन पश्चात् जब उसने आनन्द के मुख पर भी उदासी देखी तो पूछने लगी-'आखिर क्या बात है - डैडी, मम्मी, आप - जो भी आता है मुँह लटकाए, उदास - इसमें अवश्य कोई बात है।'

'कुछ नहीं बेला-’

'आप मुझसे छिपा रहे हैं - आप भी मुझे पराया समझते हैं।'

'वास्तव में - वास्तव में बात ही ऐसी है - क्या कहूँ - कोई विशेष बात तो नहीं-’ बेला ने देखा आनन्द के होंठ कांप रहे थे। उसके माथे से पसीना फूट रहा था। वह आश्चर्य से उसे देखते बोली-

'क्या बात है - आप कहते क्यों नहीं?'

'बेला - तुम्हारी दीदी हमसे सदा के लिए रूठ गईं-’

'क्या' - बेला की हल्की-सी चीख निकल गई-'तो क्या-’

'हाँ - वह उसी रात जब तुमसे मिलकर गई, बवंडर के घेरे में आ गईं।' 'तो आपने मुझसे छिपाया क्यों?' दीदी-’

वह फूट-फूटकर रोने लगी। आनन्द ने पास बैठकर उसे सांत्वना देने को हाथ बढ़ाया तो बेला ने अपनी चीखों को दबाने के लिए उसकी आस्तीन को मुँह में रख लिया।

वह आनन्द की गोद में बेहोश पड़ी थी। आनन्द ने घंटी देकर डॉक्टर को बुलाया। डाँक्टर ने इंजेक्शन देकर उसे बिस्तर पर लिटा दिया और आनन्द भयभीत दृष्टि से उसे देखता रहा - उसके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book