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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

बेला सफेद वस्त्रों में पीली हल्दी बनी लेटी थी। उसके शरीर का पूरा लहू किसी ने चूस लिया था। उसने दृष्टि घुमाकर आनन्द की ओर देखा। उसकी आँखों में छिपी हुई बिजली चमकी और दोनों के होंठों में मुस्कान दिखने लगी। बेला ने आँख के संकेत से उसे अपने और समीप बुलाया और बढ़ाकर अपना हाथ उसके हाथों में दे दिया। उसमें जबान से अपनी प्रसन्नता जताने का बल न था किंतु उसकी आँखों के प्यालों से प्रसन्नता छलक पड़ती थी।

नर्स ने बढ़कर झूले में पड़े नन्हें के मुँह से कपड़ा हटाया। आनन्द ने उधर देखा और बेला की ओर देखने लगा जो मुस्करा रही थी।

जैसे ही वह बाहर जाने के लिए बढ़ा, बेला ने सिर हिलाकर उससे ठहरने का अनुरोध किया। नर्स ने पास बिछी कुर्सी आगे बढ़ा दी और आनन्द को बैठ जाने का संकेत करते हुए बोली-'अब आप यहीं बैठिए।'

'यह क्यों?'

'अपनी बीवी का मन बहलाने को - हमें भी कुछ आराम करने दीजिए।' 'बाहर तो तूफान-’

'थम गया - अब वातावरण बिल्कुल साफ है।'

नर्स के जाने के बाद आनन्द ने कुर्सी को बेला के समीप खींच लिया और उसकी उंगलियों को हाथों में लेकर प्यार से हिलाने लगा।

'अब तो आप प्रसन्न हैं।' बेला ने धीमे स्वर में पूछा।

'क्यों?'

'आपकी कामना पूरी जो हो गई-’

'ओह - मेरी या हम दोनों की।' उसने मुस्कराते हुए उत्तर दिया।

'कुछ भी समझिए - प्रयत्न आपका और परिश्रम हमारा।'

आनन्द हँस दिया पर दूसरे ही क्षण चिंतित-सा दिखाई देने लगा। उसका मन नीलकंठ में था जहाँ न जाने संध्या पर क्या बीत रही थी - वह शीघ्र वहाँ पहुँचना चाहता था किंतु बेला उसे वहाँ से उठने न देती थी।

'संध्या दीदी क्या सो रही हैं?' बेला ने प्रश्न किया।

'नहीं तो - बेचारी बड़े समय तक प्रतीक्षा करती रही पर-’

'क्या?'

'उसे किसी आवश्यक काम के लिए शीघ्र बस्ती में जाना पड़ा - अभी आती ही होगी।'

'ओह' - बेला ने एक ठण्डी साँस खींची और आनन्द की ओर देखने लगी जिसमें छिपी बेचैनी झांक रही थी।

यों ही एक घंटा और बीत गया। आनन्द बेला के सिरहाने बैठा रहा। कभी उसे और कभी नन्हें को देख रहा था। दोनों आँखें बंद किए सो रहे थे। बेला का हाथ अभी तक आनन्द के हाथ में था। आनन्द ने धीरे-से उसका हाथ उठाकर तकिए के सहारे रख दिया। वह सो रही थी। आनन्द ने चुपके से बाहर का रास्ता लिया। बाहर निकलकर उसने टेलीफोन मिलाना चाहा परंतु व्यर्थ। सब लाइनें कट चुकी थीं। वह भागा और बेला की गाड़ी निकालकर बस्ती की दिशा में चल पड़ा।

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