ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
|
6 पाठकों को प्रिय 375 पाठक हैं |
गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
खतरे का घूघू बजा। टेलीफोन होने लगे। एक डाँक्टर बाहर आया और तेजी से दोनों को भीतर ले गया। पूरा शहर एक भयानक बवंडर की लपेट में आ गया था। खतरा हर क्षण बढ़ रहा था।
अकस्मात् एक धमाका हुआ और बिजली फैल गई। शहर अंधेरे में डूब गया। दोनों की एक हल्की-सी चीख निकल गई और ऑपरेशन-रूम की ओर बढ़ते हुए वह बोले-'डाक्टर!'
'घबराइए नहीं - भीतर उजाला है - ऑपरेशन-रूम का अपना डायनमो है', डॉक्टर दोनों को भीतर आने का संकेत कर स्वयं चला गया। दोनों ने ऑपरेशन-रूम में झांककर देखा। भीतर उजाला देखकर उन्हें संतोष हुआ। 'आप भीतर चले जाइए' - संध्या ने आनन्द को दरवाजे के भीतर धकेलते हुए कहा।
'और तुम-’
'मुझे बस्ती में जाना है।'
'इतने तूफान में - कैसे?'
'घबराओ नहीं - टैक्सी नीचे मेरी प्रतीक्षा में है।'
'परंतु, इस समय जाना खतरे से खाली नहीं', आनन्द ने संध्या को पकड़ते हुए कहा।
'कोई बात नहीं, हजारों के जीवन का प्रश्न है।'
'तो ठहरो, मैं भी चलता हूँ।'
'नहीं, नहीं - आपका यहाँ रहना आवश्यक है। तूफान थमते ही आ जाऊँगी।' आनन्द अभी कुछ कह भी न पाया था कि संध्या सीढ़ियाँ उतर गई। उसने नीचे देखा कि एक टैक्सी फाटक से बाहर जा रही थी जो देखते-देखते ही दृष्टि से ओझल हो गई।
आनन्द भय से खम्भे के साथ चिपकाकर खडा हो गया। उसे लग रहा था जैसे वह भी किसी बवण्डर में आ गया है। उसका दम घुटने लगा। उसकी आँखे ऑपरेशन-रूम में आती हुई रोशनी से हटकर छत पर लगे वायु की दिशा बताने वाले पक्षी पर जा लगीं। वह अपनी पूरी गति से अपने गिर्द घूमे जा रहा था। उसकी गति से बवंडर की भयानकता का अनुमान लगाया जा सकता था। एकाएक हवा का पक्षी एक कड़ाके के साथ रुक गया और लड़खड़ाता हुआ नीचे गिर पड़ा। आनन्द की चीख निकल गई और वह ऑपरेशन-रूम की ओर भागा। किवाड़ खुला। आनन्द उखड़े हुए स्वर मैं साँस ले रहा था। डाँक्टर ने उसकी घबराहट देखते हुए कहा-'मिस्टर आनन्द, बधाई हो, लड़का हुआ है।' 'और बेला', वह कठिनाई से पूछ पाया।
'ठीक है - अभी होश आने में देर है।'
इस सूचना से आनन्द के मुख पर तनिक भी प्रसन्नता न आई जैसे वह केवल उसकी सांत्वना के लिए हो। वह धीरे-धीरे पांव उठाता सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। वहाँ रायसाहब और उनकी पत्नी बेचैनी से प्रतीक्षा कर रहे थे। तूफान अभी तक उधम मचा रहा था। रात के कोई चार बजे बेला को होश आने पर अपने कमरे में लाया गया। नन्हें को पहले रायसाहब और मालकिन देखने गए। आनन्द खोया-सा बाहर ही बैठा रहा। न जाने आज उसका मन भय से क्यों कांपा जा रहा था। मालकिन और रायसाहब मुस्कराते हुए बाहर आए और आनन्द को बधाई देने लगे। वह चुप रहा और वैसे ही उठकर नर्स के साथ भीतर चला गया।
|