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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'नहीं, नहीं, मैं नहीं पीऊँगी - इसी पुड़िया ने मेरी नसों में आग लगा दी है - मैं नहीं पीऊँगी - यह जहर है।'

डाँक्टर की दृष्टि एकाएक कागज की उस पुड़िया पर पड़ी जिससे दवा निकालकर संध्या ने बेला को पिलानी चाही थी। उसने झट से कागज उठा उसे खोला - Poison। बड़बड़ाते हुए उसने संध्या की ओर देखा और घबराहट में बोला- 'यह क्या कर रही हो-’

'क्या?' वह झट से बोली।

'यह पुड़िया तो दूसरी है - कहीं पहले भी तो यही नहीं दे दी?'

'नहीं तो - वह तो पुड़िया - वह मेज पर रखी दवाई की पुड़ियों को उंगलियों से टटोलने लगी - सब पुड़ियाँ वहाँ थीं। उसने भागकर अलमारी में रखी पुड़ियों को देखा। वहाँ दूसरी पुड़ियाँ रखी थीं। वह यह बदली देखकर आश्चर्य में खडी-की-खडी रह गई। इतनी बड़ी भूल क्योंकर हुई।

'संभव है - भूल से वह पुड़िया-’

'नहीं-नहीं, मुझे विश्वास है - ऐसा नहीं हुआ' - संध्या आनन्द की बात काटते हुए बोली और गिलास पकड़कर उसे ध्यानपूर्वक देखने लगी। बेला मन-ही-मन अपनी सफलता पर गुनगुनाने लगी।

डाँक्टर ने झट से बॉक्स में से शीशी निकाली और उसकी दो बूँदें गिलास में घुली दवाई में मिला दीं। दवाई का रंग सफेद से गुलाबी हो गया। डाँक्टर ने धीरे से कहा-Poison., दवा भूल से दे दी गई है।'

उसने झट से एक शीशी निकाली और उसमें से चंद बूँदे चम्मच में डालकर बेला के मुँह में डाल दीं। दवाई पीते ही बेला को उबकाइयाँ आने लगीं और एक कै के साथ ही भीतर का सब कुछ बाहर आ गया।

कै के आने के पश्चात् बेला बेसुध-सी बिस्तर पर लेट गई और उसने आँखें बंद कर लीं। दो-चार बार बुलाए जाने पर भी उसने उत्तर न दिया। आनन्द की घबराहट देखकर डॉक्टर ने उसके कंधे पर थपथपाते हुए कहा-'घबराइए नहीं - सब ठीक हो जाएगा - यह जहर बाहर आ गया? इसे आराम करने दीजिए।' डाँक्टर ने मेज पर रखी दवाई की सब पुड़ियाँ अपने बक्स में डाल लीं और दूध के साथ दूसरी दवाई देने को कहकर चला गया।

संध्या वहीं खड़ी सोच में खो गई - यह सब कैसे हुआ - क्या बेला ने - पर नहीं-नहीं, वह तो अपने स्थान से उठ नहीं सकती - एकाएक उसे याद आया कि उसी ने बेला को बताया था कि इन पुडियों में जहर है - संध्या कांप गई - बेला के विषय में कई विचार उसके मन में आ-आकर टकराने लगे।

'क्या सोच रही हो?' आनन्द ने डाँक्टर को छोड़कर आते हुए कहा। 'जी', चौंकते हुए वह बोली-'सोचती हूँ इतनी बड़ी भूल क्योंकर हुई।' 'अच्छा जाने दो - दूध गरम करके ले आओ - इसे दवा दे दूँ।'

संध्या दूध लेने चली गई। आनन्द ने अपना कोट कुर्सी पर फेंक दिया और बेला के सिरहाने जा बैठा।

बेला का सिर गोद में लेकर उसने उसका पहलू बदल दिया और तौलिया से उसका मुँह साफ करने लगा। बेला ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कराने लगे। मुस्कराते हुए वह पहलू बदलकर आनन्द की गोद में सिमट गई और उसके दिल की धड़कन सुनने लगी।

'बेला!' आनन्द ने उसके बालों में उंगली फेरते हुए कहा।

'हूँ।' 'कैसा है जी अब?'

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