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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

आनन्द और संध्या को एकांत में मिलते और बातें करते देखकर उसके मन में डाह की भावना जाग उठती - वह बेचैन हो जाती और कई विचार आ-आकर उसे सताने लगते।

कभी वह सोचती कि शायद संध्या आनन्द से पूछ रही हो - यह सब क्या हुआ? कब हुआ? तुम तो कहते थे कि बेला बांझ है - बेला में बच्चे जनने की शक्ति नहीं - और यदि हो भी तो तुम कानून और समाज से लड़कर मुझसे व्याह रचाने वाले थे - फिर यह सब क्या हुआ - संध्या की आशाओं पर पानी फिर गया - यह सोचकर स्वयं ही बेला मुस्कराने लगती - फिर कोई और विचार - कोई घटना उसे गंभीर बना देती।

बगल वाले कमरे में आनन्द और संध्या किसी बात पर खड़े हँस रहे थे। बेला ने देखा और झुंझला उठी - आज वह दीदी की अतिथि थी वरना कभी अपने घर में ऐसे चोरी-छिपे की बातें होतीं तो वह फौरन उसे बाहर निकाल देती - वह अपनी हँसी को बांटना न चाहती थी।

कुछ सोचकर एकाएक ही उसने हाय-हाय की रट लगानी आरंभ कर दी। आनन्द और संध्या भागे हुए उसके पास आए। 'सिर में बड़ा दर्द है' यह कहकर उसने आनन्द से सिर दबाने का अनुरोध किया। संध्या ने यह काम करना चाहा तो बेला ने उसे रोक दिया और बोली-'इनके होते किसी पराये को कष्ट देने का मुझे क्या अधिकार है?'

पराये का शब्द सुनकर संध्या को बुरा तो लगा परंतु अवसर को देखते हुए वह चुप रही और आनन्द के कहने पर दूध लेने बाहर चली गई। उसे बेला की यह बात बिल्कुल न भायी थी कि वह पति को देवता के स्थान पर एक खिलौना समझे - वह न चाहती थी कि आनन्द फिर उसके हाव-भाव का शिकार हो जाए और उसकी तपस्या और परिश्रम व्यर्थ जाए।

दूध के साथ दवाई की गोली देते संध्या ने दृढ़ मुद्रा में आदेश देते हुए कहा-'जाइए - रात हो गई - आराम कर लीजिए-’

'परंतु मेरा सिर-’

'वह मैं संभाल' - संध्या ने बेला की बात बीच में ही काट दी और आनन्द को वहाँ से उठ जाने का संकेत किया। आनन्द चला गया। बेला को दीदी की यह बात अच्छी न लगी।

बेला चुपचाप लेटी अपनी उलझनों में खोई रही। बातों में जब उसे संध्या से पता चला कि डॉक्टर ने उसे यहीं बिस्तर पर लेटे रहने का आदेश दिया है तो पूछने लगी-

'कब तक?'

'छह महीने तक - जब तक बच्चा नहीं होता-’

'वह क्यों?'

'दशा ही ऐसी है - वरना तुम्हारी जान का भय है।'

'परंतु यह मुझसे न होगा। एक स्थान पर पड़े-पड़े मैं पागल हो जाऊँगी', वह बेचैनी और घबराहट में अपना सिर झिंझोड़ने लगी।

'धीरज रखो - सब ठीक हो जाएगा - हम तो तुम्हारे संग हैं।' बेला चुप हो गई और छत पर छिपकलियों को देखने लगी जो एक कीड़े को लेकर आपस में लड़ रही थीं - वह सोचने लगी क्या वह और संध्या भी दो छिपकलियाँ हैं - और आनन्द - उसने अपना मुँह तकिए में छिपा लिया।

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