लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

वह उसी उलझन में पड़ी संध्या से पूछने ही वाली थी कि हुमायूं ने प्रवेश किया और आनन्द के कंधे पर थपथपाते हुए बधाई दी। संध्या और आनन्द दोनों मुस्करा दिए। बेला विचित्र विस्मय में थी।

जब हुमायूं को बेला ने अपने पास अकेला पाया तो धीरे से पूछने लगी-'आपने कैसे जाना कि मैं यहाँ हूँ।'

'खुशी की इठलाती हवा जो कह आई थी।'

'क्या?'

'कि तुमने मंजिल फतह कर ली।'

'नहीं! यह तो मेरी हार की जय-जयकार हो रही है - मेरी गाड़ी की घटना ही इन लोगों की सहानुभूति का कारण बनी है। वरना-’

'वरना क्या?'

'मेरी आशाओं की अर्थी-’

'लेकिन कभी-कभी तूफानों में पड़कर टेढ़े रास्ते भी सीधे हो जाते हैं।' 'समझ में नहीं आता - आखिर यह क्या तमाशा है - सब हँस रहे हैं - मेरी बेबसी पर मुस्कराकर आपस में खुसर-फुसर कर रहे हैं - कोई बधाई देता है, कोई मुँह मीठा कर रहा है - हर किसी की दृष्टि मुझी पर लगी हुई है।'

'तो तुमसे किसी ने कुछ नहीं कहा?' हुमायूं ने भोलेपन से प्रश्न किया। 'नहीं तो-’

'आनन्द' - ऊँची आवाज से हुमायूं ने पुकारा। आनन्द भागता हुआ अंदर आ पहुँचा।

'क्या है?'

'तुम भी अजीब आदमी हो।'

'क्यों?'

'इस बेचारी से अभी कुछ कहा ही नहीं।'

'क्या?'

'मेरा सिर' - यह कहता हुआ हुमायूं आनन्द को छोड़कर बाहर चला गया कि स्वयं उससे निबट ले।

आनन्द ने एक दृष्टि जाते हुए हुमायूं पर डाली और फिर घूमकर बेला को देखा। दोनों की आँखें एक-दूसरे से मिलीं और दिलों में एक कंपकंपी-सी दौड़ गई। आनन्द धीरे से उसके पास आ ठहरा और नम्रता से पूछने लगा-'तो सच

तुम्हें इस बात का ज्ञान नहीं?'

'किस बात का?'

'तुम यहाँ धन्यवाद करने आई थीं न उस रंगीन रात का-’ 'हाँ तो-’

'भगवान ने तुम्हारी सुन ली।'

'क्या?'

'शीघ्र हमारे घर एक अतिथि आने वाला है।'

बेला यह सुनकर लजा गई और तकिए में मुँह छिपाने का यत्न करने लगी। हुमायूं और संध्या भी वहाँ आ पहुँचे और तीनों बैठकर चाय पीने लगे। बेला उसके मुख पर हर्ष की रेखाओं को पढ़कर चुपचाप बिस्तर पर लेटे मन-ही-मन मुस्करा रही थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book