लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'होने दो - इससे पहले कि वह किसी की कुटिया फूंक दे - वह स्वयं ही राख हो जाएगी।'

'नहीं-नहीं आनन्द' - संध्या ने अपना हाथ खींचते हुए कहा-'वह-’

उसकी गाड़ी स्टार्ट हो चुकी थी। इससे पहले कि दोनों उसे रोकने का निर्णय करते गाड़ी बाहर जाने लगी। गाड़ी की तेज गति और ऊँची आवाज बेला के क्रोध की सीमा बता रही थी।

एकाएक गाड़ी का ब्रेक लगने से दोनों के दिल में एक अनजान ठेस-सी लगी। एक धमाका हुआ और शीशे फूटने की ध्वनि चारों ओर गूँजी। दोनों भागकर देखने के लिए बरामदे में आए। फाटक से एक ट्रक भीतर आया। बेला ने ब्रेक लगाते-लगाते गाड़ी को ट्रक से बचाना चड़ा और वह घूमकर बिजली के खंभे से जा टकराई।

आनन्द और संध्या यह घटना देखकर तुरंत उधर दौड़े। इधर काम करते हुए मजदूर भी वहाँ पहुँच चुके थे।

बेला बेहोश गाड़ी के स्टेयरिंग पर पड़ी थी। गाड़ी का अगला भाग दब चुका था। मजदूरों की सहायता से उसे सीट से खींचकर बाहर निकाला गया। उसके माथे पर चोट आई थी।

आनन्द ने उसे अपनी बाहों में उठाया और तेज-तेज डग भरता हुआ कमरे में ले आया। डॉक्टर को फोन किया और दोनों उसकी बेहोशी दूर करने का यत्न करने लगे। डॉक्टर ने आते ही इंजेक्शन दिया और कमरे की सब खिड़कियाँ खुलवा दीं। बेहोशी का कारण क्रोध और घबराहट थी।

जब उसे कुछ समय पश्चात् होश न आया तो डाँक्टर ने उसका पूरा निरीक्षण किया और आनन्द की ओर देखकर मुस्कराने लगा। दोनों डॉक्टर के होंठों पर मुस्कान देखकर आश्चर्य से उत्सुकतापूर्वक देखने लगे। डॉक्टर ने आनन्द को एक तरफ बुलाया और उसके कान में कुछ कहा।

दवा लिखते ही फिर दोनों कानाफूसी करने लगे। संध्या से न रहा गया और पास आकर पूछने लगी, 'आखिर बात क्या है?'

'कुछ ऐसी ही बात है' - आनन्द ने मुस्कराहट होंठों में दबाते हुए उत्तर दिया।

'मैं भी तो सुनूँ-’

आनन्द धीरे से अपना मुँह संध्या के कान के पास ले आया और बोला-'तुम मौसी बनने वाली हो।'

'सच!' उसके मुँह से निकला।

'जी' - डॉक्टर जो उनके संकेत समझ रहा था, साक्षी में बोला।

बेला के होश में आने के चिह्न प्रकट होने लगे और तीनों उधर लपके। उखड़े-उखड़े साँसों में वह हिचकियाँ-सी लेने लगी। डाँक्टर ने दवाई में भिगोया रूई का फोया उसकी नाक के सामने रख दिया और तीनों दम साधे उसे देखने लगे। माथे पर आई चोट को धोकर उसने दवाई लगा दी।

डॉक्टर के चले जाने पर दोनों अपने नए रोगी के गिर्द हो गए। आनन्द उसके हाथ मलने लगा। संध्या भागती हुई दूध ले आई और दोनों ने मिलकर बलपूर्वक उसे दूध पिलाया। थोड़े समय पश्चात् पाशा और खान बीबी मुस्कराते हुए आए और बधाई देकर चले गए।

बेला आश्चर्य में थी कि यह सब क्या हो रहा है - क्या आनन्द के पास मेरे दोबारा लौट आने पर ये सब लोग उसे बधाई दे रहे हैं - या उसकी हार पर उसका उपहास उड़ाया जा रहा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book