ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'कहो, कैसे आना हुआ?' आनन्द ने संध्या के जाते ही पूछा।
'आपका धन्यवाद करने।'
'धन्यवाद! कैसा?'
'उस रंगीन रात का जो मैंने आपके साथ व्यतीत की।'
'ओह - वास्तव में बात ही कुछ ऐसी थी - मुझे फौरन बम्बई पहुँचना था।'
'क्यों नहीं - यहाँ भी तो किसी की आँखें आपकी प्रतीक्षा में बिछी हुई थीं।'
'सो तुम ठीक समझीं - न जाने क्यों मन थोड़ी देर के लिए भी इस बस्ती से दूर नहीं रहना चाहता था', आनन्द ने विष से काटते हुए उत्तर दिया।
'किसी का घर जलाकर बसाई हुई बस्तियों कभी नहीं रहतीं - और फिर वह बस्ती - जहाँ दूसरों की बेबसी पर ठहाके लगाए जाते हैं।'
'बहुत खूब - क्या यह फिल्म का डायलाग था - किंतु ऐसे डायलॉग वास्तविक जीवन में कोई प्रभाव नहीं रखते।'
'इसलिए कि आप वास्तविक जीवन से बहुत दूर अपनी रंगरलियों में मस्त हैं - किसी के उजड़े हुए घर पर नया महल खड़ा करना चाहते हैं।'
'तो क्या हुआ, अपने परिश्रम से जो बनाया बन गया - तुम जैसी नागिन के भरोसे रहता तो आज तक कोई नाम और चिह्न भी न रहता।'
'क्यों नहीं - अब तुम सब कुछ कहोगे - नागिन, सपेरन, बदचलन और बांझ भी - जो जी में आए कह डालिए - आप यों मेरा अपमान करके रास्ते से क्यों हटते हैं - मैं तो स्वयं आपसे दूर जा रही हूँ - कभी न लौटने के लिए - अब मैं आपकी आँखों में न खटकूँगी - झुकना तो दूर मैंने भी कभी नहीं सीखा - न जाने जीवन की कौन-सी बेबसी मुझे यहाँ खींच लाई है - मैं जीवित ही अपने आपको विधवा समझती-’
'बेला' - पर्दे के पीछे से निकलती हुई संध्या चिल्लाई, 'ऐसे अशुभ बोल मुँह से मत निकालो।'
'तुम घबराओ नहीं - मेरी माँग का सिंदूर तुम्हारी माँग में लग जाएगा।' 'होश में आओ' - संध्या ने लपककर बेला को कंधे का सहारा दिया जो क्रोध में कांप रही थी। उसका शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था - उसकी आँखें आग बरसा रही थीं। वह इस पागलपन में सब कुछ भूल रही थी।
जैसे ही संध्या ने उसे अपनी बाहों में लिया, बेला ने झटके से उसे अलग कर दिया और चिल्लाते हुए बोली-
'मुझ अशुभ को मत छुओ - वरना तुम भी बांझ हो जाओगी - और यह जीवन-भर अपने घर में उजाला देखने को तरसते रहेंगे - और फिर शायद तुम्हारे उजड़े हुए घर पर भी कोई नया महल बना डालें।'
इससे पहले कि वह कोई उत्तर देती, वह क्रोध में फुफकारती हुई कमरे से बाहर चली गई। संध्या उसे रोकने को बढ़ी परंतु आनन्द ने उसे पकड़ लिया और बोला-जाने दो-'
'नहीं - उसे रोकना होगा - वह किसी बड़े भ्रम में है।'
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