ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'कुछ भी तो नहीं-’
'मैं देखती हूँ कि आप मुझसे कुछ पूछना चाहते हैं किंतु हर बात आपके होंठों पर आकर रुक जाती है।'
'तुमने ठीक जाना - कुछ पूछना था लेकिन पूछ नहीं सकता।'
'ऐसी बात क्या है - पूछिए।'
'वह बात जो एक मर्द को औरत से नहीं पूछनी चाहिए।'
'मैं समझी नहीं - आप साफ-साफ कहिए - भय से मेरा दिल-’
'यही पूछना है कि तुम्हारे दिल के दर्द का क्या होगा?'
'कैसा दर्द? दिल का दर्द - कुछ भी तो नहीं।'
'तुम मुझसे छिपा रही हो। ऐसी कश्ती की हालत मैं खूब समझता हूँ जो भँवर में फंसी हो और उसे सहारा देने वाला दूर किनारे जा खड़ा हो।'
'मुझे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं', वह गर्दन अकड़ाते बोली। 'यही तो तुम्हारी भूल है - सहारे और मदद के लिए तुम्हें किनारे पर खड़े आदमी को पुकारना ही होगा - वह कोई दूसरा नहीं - तुम्हारा ही खेवनहार है - वरना तुम डूब जाओगी।'
'हुमायूं भाई! तूफान बहुत बढ़ चुका है - नाव को डूबने ही दीजिए।'
'नहीं, नहीं - सहारा देनेवाले का क्या - वह कोई और पतवार थाम लेगा - डूबोगी तो तुम ही - इस गहरे और भयानक मझधार में।'
बेला एक अज्ञात भय से कांप गई और फिर जरा सी देर की निस्तब्धता को तोड़ते बोली-'यह कवियों की-सी बात क्या छेड़ बैठे आप?'
'इसलिए कि तुम्हारा खेवनहार आज किसी और किश्ती को खेने जा रहा है। 'मैं समझी नहीं - पहेलियाँ बूझने की अब मुझमें बुद्धि नहीं।'
'तो सुनो - तुम्हारा आनन्द संध्या से मुहब्बत करता है।'
'वह मैं जानती हूँ - मुझे क्या?'
'लेकिन अब दोनों शादी करने वाले हैं।'
'नहीं'-बेला की एकाएक चीख निकली जो उखड़े साँस से कटकर रह गई, 'नहीं ऐसा नहीं हो सकता - आनन्द यह पग कभी नहीं उठा सकता और फिर आप ही कहिए मेरे होते हुए कानूनन वह दूसरा व्याह कैसे करने लगा।'
'तलाक लेना होगा', हुमायूं भारी आवाज को जमाकर बोला।
'वह इतना सरल नहीं - हमारी अनबन का कोई प्रमाण भी तो होना चाहिए, कोई कारण भी होना चाहिए।'
'उसके पास वह है।'
'क्या?' बेला ने झट पूछा। 'वह घर-गृहस्थी की जिन्दगी चाहता है। उसका कहना है कि तुम बांझ हो - उसे औलाद चाहिए। औलाद के लिए कानून और समाज दोनों दूसरी शादी की इजाजत देते हैं।'
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