लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'कुछ कहा उसने?'

'जुबान से कुछ नहीं - पर ताड़ने वाले कयामत की नजर रखते हैं।' यह कहकर हुमायूं फिर से हँसने लगा जैसे आज वह आनन्द पर बहुत प्रसन्न था। हुमायूं, संध्या और आनन्द बैठकर कोई नई युक्ति सोचने लगे जिससे बेला फिल्मी दुनिया को छोड़कर अपने वास्तविक जीवन में लौट आए। उसे डाह में जलाने की योजना अपना रंग ला रही थी। संध्या जानती थी कि वह स्वयं इस खेल में बेला की आँखों में गिर जाएगी - किंतु एक दिन उसे अपनी भूल तो सुधारनी ही होगी।

दिन बीतते गए और बेला फिर से काम में लग गई। उसकी फिल्म समाप्त होने वाली थी। दिन-रात शूटिंग का प्रोग्राम रहने लगा और वह एकाग्रचित्त अपना काम किए जा रही थी। अब वह आनन्द को बिल्कुल भूलकर इस नई दुनिया में खो जाना चाहती थी।

एक शाम शूटिंग के मध्य एकाएक बेला बेहोश होकर गिर पड़ी। हुमायूं उसे होश में लाकर घर ले आया। वह उसके मन की दशा को भली प्रकार समझता था। स्टूडियो के और लोग थकावट समझते किंतु वह जानता था कि उसे कौन-सा घुन खाए जा रहा है - इसलिए वह कभी आनन्द के विषय में बात न करता।

दो महीने की अथक मेहनत के पश्चात् सपेरन की शूटिंग समाप्त हो गई। हुमायूं ने सेठ साहब से कह-सुनकर बेला का पूरा हिसाब चुकता करवा दिया कि कहीं ऐसा न हो कि फिल्म की असफलता के कारण उसे कुछ न मिल पाए। बेला भी हुमायूं की सहानुभूति और उसके उपकारों तले दबी हुई हर बात उससे पूछ कर करती। यदि वह कोई कड़वी बात भी कह देता तो बुरा न मानती। उसे विश्वास था कि हुमायूं ही केवल एक ऐसा व्यक्ति है जो उसकी भलाई चाहता है।

शूटिंग समाप्त होने पर बेला के पास कोई काम न रहा। हर समय अकेले बैठे रहने से उसके मस्तिष्क में कई प्रकार के विचार चक्कर काटने लगे। वह बेचैन रहने लगी। जब वह बैठी-बैठी बहुत तंग आ जाती तो हुमायूं के यहाँ चली जाती। हुमायूं उसका पीला और उदास मुँह देखकर कुछ पूछना चाहता, पर कुछ सोचकर चुप रह जाता। वह हर समय यही प्रयत्न करता कि वह हँसे, खेले, प्रसन्न रहे।

अवकाश की घड़ियाँ बिताने के लिए उसने हुमायूं से मेकअप का काम सीखना आरंभ कर दिया। हुमायूं जानता था कि उसे ठीक मार्ग पर लाने का यही समय है। फिल्म अभी एडीटिंग में है और रिलीज होते ही यदि सफल हो गई तो बेला के नाम के झंडे गड़ जाएंगे और प्रोड्यूसरों का जमघट लग जाएगा। बेला की कीमत की बोलियों लगेंगी और फिर उसे प्रसिद्धि के अवकाश से खींचकर धरती पर लाना बहुत कठिन होगा।

एक दोपहर जब बाहर हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी, हुमायूं बेला को अपने स्टूडियों में बिठा मेकअप सिखा रहा. था और मिट्टी की एक मूर्ति पर -सफेद दाढ़ी से एक बूढ़े का मेकअप करने में व्यस्त था। बेला का साँस फूला जा रहा था और वह बार-बार हाथ उठाकर माथे पर आए पसीने को साड़ी के पल्लू से साफ करती।

अचानक बाहर बादलों की भांति गरज हुई और बेला भय से कांप गई। हुमायूं उसे देखकर मुस्करा दिया और पूछने लगा- 'देखता हूँ आजकल तुम जरा घबराई-सी रहने लगी हो।'

'नहीं तो, यों ही जरा डर गई थी।'

'दुनिया ही ऐसी है - जहाँ हर घड़ी बच-बचकर चलना पड़ता है - तुम तो-’

'आप रुक गए - ऐसा क्यों?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book