ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
वह बिस्तर जिस पर रात को दोनों एक-दूसरे के दिल की धड़कनें गिनते रहे थे उसे खाने को दौड़ा। उसने घृणा से चादर पर पड़ी सलवटों को देखा और एक चीख मारते हुए बिस्तर उठाकर चारपाई से फेंक दिया। कमरे की दीवारें छत और हर सामान उसकी हँसी उड़ा रहे थे। उसकी बेबसी पर ठहाके लगा रहे थे। आश्चर्य से माली ने भीतर झांकना चाहा, किंतु बेला ने झट से किवाड़ बंद कर दिए। उसकी आँखों से बेबसी के आँसू बह निकले - उसकी जीत हार बन गई। वह क्रोध में आनन्द के उन कपड़ों को मसलने लगी तो अभी तक उसके शरीर को ढांपे हुए थे। उसने कमीज के सब बटन तोड़ दिए - अब वह एक क्षण भी पहन न सकती थी - उसने उन्हें उतारकर एक ओर फेंक दिया और अपने कपड़े पहन लिए जो अभी तक कुछ गीले थे।
जब गाड़ी में बैठी वह बम्बई लौट रही थी, उसकी आँखों में बार-बार वह दृश्य घूम जाता जब रात के अंधेरे में वह आनन्द की बाहों में जकड़ी फूली न समा रही थी। तेज हवा अभी तक उलझे-उलझे बालों से खेल रही थी। धीरे-धीरे हर दृश्य चला जाता और धुंधला होते-होते ओझल हो जाता - गाड़ी सबको छोड़ आगे बढ़ जाती थी पर बेला के मन पर लगी चोट न गई और न उसकी पीड़ा कम हुई, बल्कि ज्यों-ज्यों वह बीनापुर से दूर होती गई उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रो-रोकर उसकी आँखें सूज गई थीं।
आज का घाव शायद उसके जीवन का पहला और अनोखा घाव था।
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