ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'आज इस भयंकर रात में होश कहाँ?' बेला ने इस ढंग से कहा कि आनन्द के शरीर में बिजली-सी दौड़ गई। वह संभलते हुए बोला- 'कपड़े बदल डालो - ठंड लगने का डर है।'
'यहाँ तो शरीर में आग लग रही है - देखिए न' - बेला ने आनन्द का हाथ अपने सीने पर रखते हुए कहा-'इसी गर्मी में सब सूख जाएगा।'
आनन्द ने अनुभव किया, बेला का शरीर दहक रहा था। उसकी आँखों की लालिमा से प्रतीत होता था मानों उसने पी रखी हो।
बेला उन्माद-भरी आँखों से उसे देखे जा रही थी। आनन्द ने बच्चों की भांति उसे थपथपाते हुए कहा-'बालक न बनो और ये गीले कपड़े उतार दो।' 'मेरे पास तो यही एक जोड़ा है।
'तो क्या सामान-’
'बस - अकेली जान, अपने साथ और कुछ भी तो नहीं लाई सिवाए एक' - वह कहते-कहते रुक गई।
'क्या?' आनन्द ने झट से पूछा।
'एक दिल के' - बेला ने उसके माथे पर पानी से चिपटी लट को हटाते हुए कहा।
आनन्द गुदगुदा उठा और चंद क्षण सोचने के बाद बोला-'अच्छा, तो मैं तुम्हारा प्रबंध करता हूँ।' आनन्द ने शीघ्रता से अपना सूटकेस खोलकर स्लीपिंग सूट निकाला और बेला की ओर बढ़ाते हुए बोला- 'लो इसे पहन लो।'
'और आप-’
'मेरे पास दूसरा है।'
कमरे की बत्ती बंद कर दी गई और दोनों कपड़े बदलने लगे। इस अंधेरे में भी दोनों एक-दूसरे की धड़कन साफ सुन रहे थे।
आनन्द ने कपड़े बदलने के बाद धीरे से पूछा, 'कर दूँ उजाला।'
'ठहरिए - एक मिनट' - बेला ने तेजी से कहा।
आनन्द ने चुपके से दीवार पर लगा बटन दबा दिया। उजाला होते ही उसने देखा कि बेला वहाँ न थी। वह आश्चर्य से दृष्टि घुमाकर कमरे में देखने लगा। उसके पीछे खड़ी बेला उसकी कमर में बाहें डालकर उससे लिपट गई जैसे वह उस भेष में उसके सामने आने से लजा रही हो।
आनन्द ने खींचकर उसे सामने खड़ा कर दिया। मर्दाने स्लीपिंग सूट में वह भली लग रही थी। ढीला कुर्ता, पैरों में पड़ा पायजामा और निखरा हुआ जोबन - आनन्द ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके शरीर की गर्मी अनुभव करने लगा।
बेला ने जब देखा कि वह आनन्द के मन और मस्तिष्क पर छा चुकी है तो उससे अलग होकर गीले कपड़ों को निचोड़ने लगी।
आनन्द बरामदे में जा ठहरा और सामने फैली झील को देखने लगा। बरसात पहले से कम हो गई थी। परंतु आकाश पर छाई घटाएँ अभी तक अपने सीने में तूफान छिपाए थीं।
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