लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ

नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

375 पाठक हैं

गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

बेला ने देखा कि आनन्द किसी भयानक विचार में डूबा है - मुख पर कालिमा बिखर रही है - शरीर से पसीना ऐसे छूट रहा है मानों धौंकनी से भाप निकल रही हो। आनन्द ने बेला को अपनी ओर यों देखते देखा तो होंठों पर बनावटी मुस्कान ले आया और बोला-’कितना विचित्र दृश्य है नीचे-’

'आप ठीक कहते हैं' - बेला के स्वर में गंभीरता थी, 'इतना सुंदर दृश्य - पानी का तेज बहाव - और फिर अकेलापन - दूर-दूर तक किसी का गुजर नहीं - फिर प्रतीक्षा कैसी?'

'प्रतीक्षा? किसकी'-आश्चर्य से देखते आनन्द ने पूछा।

'मंजिल तो आ गई - इससे ऊँची चोटी और कोई नहीं है। साहस कीजिए - अंधेरा बढ़ रहा है और आप यह भी न जान पाएंगे कि अपनी बेला को किस खड्डे में धकेला था।'

'बेला!' आनन्द के मुँह से चीख निकली - दूर दो बादल आपस में टकराए और एक भयानक गरज उत्पन्न हुई - आनन्द ने बेला को बाहों में जकड़कर छाती से चिपका लिया। बेला की आँखों से निकलते आँसू उसकी छाती को भिगो रहे थे।

दोनों मौन खड़े एक-दूसरे से चिपके बादलों में खड़े रहे। झूमती हुई घटाओं ने बरसना शुरु कर दिया। दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े ढलान पर भागने लगे।

एक विचित्र खिंचाव था - एक अनोखा बंधन था जो दोनों को एक-दूसरे के समीप ला रहा था। पानी की बौछार को चीरते हुए दोनों भागे जा रहे थे। जब दोनों ने पुराने बंगले में पाँव रखा तो झेंपकर रुक गए। सामने माली बैठा उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। अपना सामान देखकर आनन्द ने उसका धन्यवाद किया और बोला-'अच्छा काका - अब आराम करो - बरसात बढ़ती जा रही है।'

'और आपका खाना-’

'कुछ नहीं - आज हमें भूख नहीं।'

माली मुस्कराता हुआ बाहर चला आया। आनन्द ने चोर दृष्टि से बेला को देखा जो भीगे कपड़ों में सिमटी खड़ी थी और किवाड़ बंद करने माली के पीछे चला गया।

बेला खिड़की के पास खड़ी होकर देखने लगी। बरसात का पानी छप-छप करता झील से गिर रहा था। हवा के झोंके कभी-कभी तो पानी की बौछार को खिड़की के भीतर तक ले आते और भीगी बेला को और नहला जाते।

इस समय उसके मस्तिष्क में हुमायूं के वे शब्द घूमने लगे जो उसने सांत्वना देते हुए कहे थे-'नफरत की इंतहा में मुहब्बत की सीढ़ी है - और तुम औरत हो - हसीन औरत - तूफानों से उलझना तुमने खूब सीखा है।'

आज जीवन के एक और तूफान से वह उलझ रही थी। वह मन-ही-मन अपनी इस सफलता पर मुस्करा रही थ्री। आनन्द जो कुछ समय पूर्व उसके प्राण लेने की सोच रहा था अब भंवरा बना उसके गिर्द मंडराएगा।

प्रेम की दुनिया से दूर बेला फिर से घमंड के नशे में डूब गई। आनन्द का झुकाव पुरुष की निर्बलता ही तो थी - वह उसके प्रेम का अनुमान न लगा सकी - उसे किसी तराजू में न तोल सकी।

आहट हुई और बेला ने फिर झुककर बाहर देखना आरंभ कर दिया। आनन्द ने मुस्कराकर खिड़की बंद कर दी और बोला-'पानी से भीगी जा रही हो - होश नहीं!'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book