ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
समय बीती हुई बातों को दोहराता है। आसपास के कई उजड़े हुए चिह्न, बीते हुए समय के अवशेष, पुरानी रंगीनियों को क्षण-भर के लिए जीवित कर देते हैं और मानव अपने-आपको भूलकर कुछ समय के लिए उसी संसार में लौट जाता है जहाँ उसे सुख प्राप्त हुआ था।
समय बीता। एक शाम इसी स्थान पर बैठकर दोनों ने अपने प्रेम को नीलकंठ का नाम दिया था। दोनों को वह दृश्य स्मरण हो आया और दोनों बहकी-बहकी दृष्टि से एक-दूसरे को देखने लगे। उनमें से किसी को भी उसे शब्दों में ढालने का साहस न हुआ।
आनन्द ने घूमकर उस स्थान को देखा और वही घूमती हुई दृष्टि उस नन्हीं-सी बस्ती पर जा रुकी और जिसे संध्या ने दिल के टुकड़ों से बसाया था जहाँ के रहने वाले उसके हृदय के पुजारी थे - किसी की आह भी निकलती तो वह झट घाव पर मरहम-पट्टी रखने को भागती - जहाँ प्रेम था, सच्चाई थी और एकता थी - जहाँ घमण्ड और झूठा मान न था।
यदि यह छोटी-सी बस्ती संध्या उसके मन में बसाती तो - वह यह विचार आते ही तड़प गया - क्या यह भूल अब नहीं सुधर सकती - क्या सवेरे का भूला साँझ को अपनी मंज़िल पर लौट नहीं सकता - क्या वह मौत को अलग करके फिर जीवन की शरण नहीं ले सकता।
एकाएक उसके कल्पना के महल को एक ही विचार ने तोड़ दिया - समाज-दुनिया और फिर वह देवी जिसके सामने वह यह कहने का साहस भी न कर सकता था।
'सोचता हूँ अब क्या होगा?'
'तुम्हें इस दुनियाँ में हँसते हुए जीना होगा।'
'किंतु ऐसे जीने से तो मौत अच्छी।'
'मैं तुम्हें जीना सिखला दूँगी-’
उसे अनुभव हुआ जैसे उसी के मन की बात उसकी जबान पर आने वाली है। वह झट से बोला, 'कैसे?'
'बेला को फिर आपके चरणों में ले आऊँगी।'
बेला का नाम सुनते ही वह तिलमिला उठा मानों किसी बिच्छू ने उसे अचानक डस लिया हो। वह उसे भूल जाना चाहता था।
उसका नाम भी उसके लिए कष्टप्रद था - और संध्या हर थोड़े समय पश्चात् यह नाम उसके कानों में उड़ेल देती।
आनन्द चुप रहा।
आनन्द संध्या के साथ ही रहने लगा। अब वह कारखाने का जनरल मैनेजर था। अनुभव तो था ही, चन्द ही दिनों में कारखाने का पूरा काम उसने संभाल लिया। उसके वहाँ आने से संध्या के कंधों का बोझ हल्का हो गया। उसने अपना बहुत-सा काम उसे सौंप दिया और स्वयं दिन-रात किसी विचार में मग्न रहने लगी।
संध्या ने आनन्द के पास आकर उसके पास ठहरने की सूचना रायसाहब को दे दी जो एक दिन उसे मिलने भी आए परंतु आनन्द ने मिलने से इंकार कर दिया। संध्या को विश्वास था कि जब रायसाहब बेला से यह बात कहेंगे तो वह अवश्य उसके यहाँ आएगी।
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