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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास


सत्रह

दिन की सुनहरी धूप को आज बादलों ने ढक रखा था। बादलों के जमघट बढ़कर धुंध के रूप में जमीन पर उतर आए थे। हवा में तरी होने से हर वस्तु भीग रही थी।

आनंद भी चारपाई पर लेटा सामने की खिड़की से बाहर फैली इस धुंध को आश्चर्य से देखे जा रहा था जिसके कारण पूरा कमरा भीग-सा गया था - यों प्रतीत होता था मानों बरसात भीतर घुस आई हो।

उसने धुंध में से बाहर देखना चाहा किंतु उसे बाहर कुछ दिखाई न दिया। वह आश्चर्य से कमरे की दीवारों को देखने लगा। साफ-सुथरा कमरा, हर चीज ढंग से रखी हुई, सफेद फर्नीचर और मेज पर रखी शीशियों से वह किसी अस्पताल का कमरा जान पड़ता था।

दवाईयों को देखते ही उसका हाथ उठा और उसकी कांपती हुई उंगलियों ने माथे पर बंधी पट्टी को छुआ। उसे याद आ गया कि अधिक रात गए जब वह सड़क के बीचों-बीच बढ़ता जा रहा था, उसकी टक्कर एक मोटर से हो गई थी।

उसके बाद क्या हुआ, उसे कोई खबर न थी। वह घायल हुआ और अपने होश खो बैठा - उसे इसका भी ध्यान न था। वह जानना चाहता था कि उसे कौन उठाकर अस्पताल में लाया है।

पांव की चाप सुनाई दी तो वह चौकन्ना होकर बैठ गया। पहले नर्स भीतर आई जिसकी आँखों में घृणा की झलक थी परंतु होंठों पर बनावटी मुस्कान - शायद उसे भयानक मरीज पसंद न था।

जैसे ही नर्स ने मुँह से थर्मामीटर निकालकर ताप पढ़ा, आनंद ने पूछा- नर्स-

'क्या है?'

'यहाँ मेरा इलाज कौन करवा रहा है?'

'मैं कुछ नहीं जानती।' नर्स ने कठोर स्वर में उत्तर दिया।

द्वार पर आहट हुई। डाँक्टर किसी से बातें करता हुआ भीतर आया। आते ही नर्स से उसने कुछ पूछा।

'नॉर्मल-’ नर्स ने उत्तर दिया।

‘थैंक्स गॉड’ -लो मिस संध्या तुम्हारा कष्ट कम हुआ।

'कष्ट कैसा - डाक्टर यह तो मेरा कर्त्तव्य है।'

'संध्या-’ और वही बारीक और सुरीली आवाज जो बहुत समय पहले उसने सुनी थी। आनंद कांप-सा उठा और उस लड़की की ओर देखने लगा जो डाक्टर से कह रही थी-’यदि कोई राही भी घायल हो तो मुझसे नहीं देखा जाता - फिर यह तो मेरी ही गाड़ी से टकराया है।'

आनंद ने जब चोर-दृष्टि से संध्या को देखा तो हक्का-बक्का रह गया। यह उसी की संध्या थी जो उसे कोई अन्य समझकर यहाँ तक ले आई थी। वह उसे इस दशा में पहचान न सकी। अच्छा ही हुआ वरना वह भी उसे सड़क पर ही ठुकराकर बढ़ जाती। उसने भी तो जीवन की लंबी सड़क पर एक दिन उसे ठुकराया था।

यह सोचकर आनंद अपने मन में कोई चुभन अनुभव करने लगा। उसने लज्जा से आँखें झुका ली और मुँह दूसरी ओर कर लिया। डाँक्टर ने नर्स को दवाई लिखकर दी और संध्या के साथ बाहर चला गया।

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