ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'नहीं, बल्कि किस्मत उसे यहाँ खींच लाई है - मैं क्या जानता था कि कल रात जिस बदनसीब की हथेली पर मुस्कराते हुए तुम रुपया रखोगी - वह और कोई नहीं, तुम्हारा पति है।'
'मिस्टर हुमायूं - जरा धीरे, लोग क्या कहेंगे।'
'यही कि हिन्दुस्तान की इतनी मशहूर एक्ट्रेस का पति एक पागल है, भिखारी है, दाने-दाने को मोहताज है।'
'यों न कहिए - उन्हें इस दशा में मैं नहीं लाई - वह स्वयं आए हैं - मैं न जानती थी कि वह इतने दिल के छोटे हैं।'
'दिल का छोटा या बड़ा होना सब वक्त के अख्तियार में है - मुझे अफसोस तो इस बात का है कि तुमने एक देवता को किस कदर गलत समझा - वह क्या था और उसे क्या बना दिया।'
'परंतु अब वह कहाँ है?'
'नसीब की ठोकरें खा रहा होगा - जानती हो आज सुबह उसने नाश्ता मेरे साथ किया - पूरे दस दिन के बाद - न जाने वह इस पागलपन में क्या कर बैठे - और कहीं-।'
हुमायूं एकाएक कांपकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसका मस्तिष्क उस समय कहीं और घूम रहा था। कहीं आनंद कुछ कर न बैठे - जीवन से लाचार होकर मानव क्या कुछ नहीं कर जाता।
रात के दस बजे हुमायूं ने बंबई का कोना-कोना छान मारा परंतु उसे आनंद का कहीं पता न चला। हार-थककर वह अपने घर के गोल कमरे में खिड़की के पास बैठ गया। उसकी आँखों से आँसू फूट पड़े। उससे आनंद की यह दशा देखी न गई थी। वह अभी तक इसी प्रतीक्षा में था कि शायद किसी समय आनंद आकर उसका द्वार खटखटाए - पर वह न आया।
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