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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'तो इसे बैठकर कोसूं - और बस बैठा रहूं - वह मुझसे न होगा।'

'कौन कहता है तुम्हें ऐसा करने को-’

'तो क्या करूँ?'

'इस नसीब को बदल डालो-’

'कैसे?' 'ठीक हो जाएगा - उठो, अपनी हालत बदलो - नाश्ता तैयार है।'

जब हुमायूं स्टूडियो पहुँचा तो उसके साथ एक भिखारी को देखकर सब उधर ही देखने लगे। उसने आनंद की बिगड़ी हुई सूरत में और व्यंग्य भर दिए थे और मेकअप से उसे पागल भिखारी-जैसा बना दिया था जिससे उसे कोई भी पहचान न सके, बेला भी देखने लगी पर उसे पहचान न पाई और उसकी सूरत देखकर सेठ साहिब से बोली-

'मुझे तो अभी से डर लगता है - स्टेज पर क्या होगा?'

'सीन अच्छा फिल्माया जाएगा - वास्तविक रंग दिखलाने को ही मैंने इसे सड़क से पकड़ा है।'

शूटिंग आरंभ होने से पहले ही हुमायूं ने आनंद को समझा दिया कि वह ऐसी बात न कर बैठे जो उसकी वास्तविकता को प्रकट कर दे - उसे अपने-आपको प्रकट करना चाहिए तो केवल बेला पर जो उसे देख ले, समझ ले किंतु कुछ कह न सके।

हुमायूं का विश्वास था कि बेला आनंद को ऐसी दशा में देखकर बेचैन होगी, संभव है उसकी बेचैनी उसे फिर ठीक मार्ग पर ले आए।

डायरेक्टर ने आवाज दी और सब तैयार हो गए - स्टेज बिजली के उजाले से जगमगा उठी। आनंद एक दीवार की ओट में छिपकर खड़ा हो गया। बेला इठलाती हुई पायजेब की झंकार के साथ आगे बढ़ी। डायरेक्टर ने आनंद को संकेत किया। वह संकेत पाते ही लपका और बांह से खींचकर उसके गले को अपने दोनों हाथों में ले लिया।

उसकी मोटी-मोटी आँखें और क्रोध से भरी हुई सूरत देखकर बेला सचमुच डर गई। उसे विश्वास हो गया कि वह आनंद ही था। जैसे ही उसने जोर से अपनी उंगलियों उसके गले में गाड़ीं, उसकी चीख निकल गई। डायरेक्टर ने 'ओके' की आवाज के साथ ही 'कट' कहा और सब उधर लपके। आनंद अभी तक उसका गला दबा रहा था। हुमायूं ने बढ़कर खींच लिया। बेला धरती पर बेसुध पड़ी थी।

आनंद ने क्रोध में हुमायूं का हाथ झटका और लंबे-लंबे डग भरता हॉल से बाहर चला गया। चन्द क्षण तक तो लोग उसे देखते रहे और फिर बेला की ओर बढ़े। सेठ साहब उसके मुँह पर पानी के छींटे डाल रहे थे।

जब उसे होश आया तो वह घबराहट में विस्फारित दृष्टि में इधर-उधर देखने लगी। वह पागल भिखारी वहाँ से जा चुका था। सेठ साहब की जुबान से यह सुनने पर भी घबराहट न गई। एक हुमायूं था जो उसकी व्यग्र आँखों में छिपी हुई हलचल को समझता था।

आज की शूटिंग का प्रोग्राम बंद कर दिया गया। जैसे ही बेला हुमायूं के पास अकेले में बैठी तो उससे बोली- 'जानते हो यह कौन था?'

'हाँ - तुम्हारा आनंद-’ हुमायूं ने बिना किसी घबराहट के उत्तर दिया।

'ओह!' उसके कांपते हुए होंठों ने एक सिसकी ली, 'तो आप जान-बूझकर उसे यहाँ लाए थे।'

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