ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
दूसरी सवेरे जैसे ही हुमायूं नाश्ते के लिए मेज पर बैठा किसी ने घंटी बजाई। हुमायूं ने उठकर द्वार खोला और आश्चर्य से उसे देखता रह गया। लंबे-लंबे बालों और दाढ़ी में छिपी दो मोटी-मोटी आँखें अंदर धंसी हुई उसे घूर रही थीं। दो-चार क्षण के मौन को तोड़ते हुए कुछ कंपित स्वर में पूछने लगा-'तुम कौन हो?'
'क्या चाहिए?'
आनंद ने उसी का दिया हुआ कार्ड उसके सामने कर दिया।
'ओह - वह रात वाला पागल भिखारी - पर मैंने तो तुम्हें स्टूडियो में बुलाया था यहाँ नहीं - और हाँ, तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला?'
आनंद ने देखा कि हुमायूं की आवाज अभी तक कांप रही है। वह भीतर आ गया। हुमायूं की कंपकंपी बढ़ गई - वह यहाँ कैसे आ गया।
'तुम्हें यहाँ का पता कैसे चला?' हुमायूं ने अपने प्रश्न को दोहराया।
'एक समय से जानता हूँ - यहाँ एक मित्र रहता था।' आनंद के स्वर में निश्चय और कठोरता थी।
'कौन है! कब! मैं तो बड़े समय से रहता हूँ।'
'शायद वह मर गया हो-’
'मर गया हो - नहीं, तुम झूठ कहते हो - वह मरा नहीं। ऐसा जान पड़ता है कि मैं तुम्हें अच्छी प्रकार जानता हूँ - तुम-तुम मेरे आनंद हो।' हुमायूं ने चिल्लाते हुए उसे देखा, दोनों गले मिल गए।
'लेकिन यह पागलों की-सी हालत?'
'तुम जैसा मित्र मर जाए तो अपनी यही दशा होगी।'
'ऐसा मत कहो', हुमायूँ ने आनंद का संकेत समझते हुए कहा और हाथ से पकड़कर उसे पास कुर्सी पर बिठा लिया, 'आनंद! शायद तुम नहीं जानते कि भाभी को मैंने कितना रोका है। मेरे मना करने पर उसने खुद सेठ साहब को खत लिखे - मुझे तो उस दिन पता चला जब वह यहाँ दफ्तर में आ धमकी और सेठ साहिब ने बतलाया कि सपेरन की हीरोईन बेला होगी।'
'ओह, मैं उसे मार डालूँगा।'
'सब्र से काम लो - गुस्सा थूक दो - मेरे होते भाभी पर आंच नहीं आ सकती - अब भी कुछ नहीं गया - फिल्म खत्म होने वाली है - दूसरा कांट्रेक्ट मिलने से पहले उसे यहाँ से ले जाओ।'
हुमायूं की इस बात पर आनंद पागलों की भांति हंसने लगा फिर कठिनाई से हंसी रोकते हुए बोला-'हुमायूं! पक्षी पिंजरे से निकल चुका है - अब उसके पर न कट सकेंगे - और फिर उड़ने दो उस पक्षी को दूर - अकाश की नीली गहराईयों में - थककर धरती पर गिरेगा तो मैं इसे ठोकर भी न लगाऊँगा - हुमायूं मेरे प्रिय मित्र, अब तुम्हें क्या कहूँ - मैं क्या था और क्या बन गया हूँ, मुझ पर क्या-क्या बीती - कितना दु:खी हूँ - दुनिया भर के बहुरूपिये फिल्मी जगत में लाते हो - तुम्हारे हाथों में कमाल है, मुझे भी कोई-सा रूप दो कि मैं आनंद न रहूँ, संसार मुझे पहचान न सके, वह भूल न जाए कि आनंद कौन था - कोई मुझ पर हंस न सके।'
'पहले कोई क्या हंसेगा तुम पर - मैं तुम्हारा रूप बदल देता हूँ, तुम्हें कोई भी पहचान न सकेगा - पर इससे क्या होगा - दुनिया भूल सकती है, मैं भूल सकता हूँ लेकिन तुम अपने आपको कैसे भूल सकोगे, इस बहुरूप में भी तुम्हें क्योंकर यकीन होगा कि तुम आनंद नहीं - तुम्हारी बेला लाखों के दिल की रानी बन चुकी है - हर कोई तुम्हारे नसीब की हंसी उड़ा रहा है।'
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