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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

आनंद चौकन्ना हो गया। सामने से बेला, सेठ और उसके साथ हुमायूं कार की ओर जा रहे थे। हुमायूं को देखकर आनंद क्रोध से आग बबूला हो गया। उसे अपने मित्र से ऐसी आशा न थी कि वह बेला को ऐसे काम में डालेगा। जैसे ही वह कार की ओर आए, आनंद भी छिपते-छिपते उनके साथ बढ़ने लगा। न जाने उनके मन में क्या आई कि वह झट से आगे बढ़ा और उसने बेला का हाथ पकड़ने का एक व्यर्थ प्रयत्न किया।

'ऐ क्या करता है?' सेठ साहब रुकते हुए चिल्लाए।

वह पागलों के समान उसकी ओर देखने लगा। हुमायूं ने एक पग आगे बढ़ाकर उसे धकेलते हुए कहा-'क्या है बाबा?'

'न जाने यह भिखारी लोग रात को भी पीछा क्यों नहीं छोड़ते?'

'लो मिस्टर हुमायूं.. इसे यह दे दो - आज के दिन किसी को 'न' नहीं करनी चाहिए', बेला ने एक रुपया हुमायूं को देते हुए कहा।

'भीख ही देनी है तो अपने हाथों-’

बेला यह सुनकर मुस्कुरा पड़ी और वही रुपया उसने स्वयं उसकी हथेली पर रख दिया। बढ़े हुए बाल और नाखून, धंसी हुई आँखें - आनंद की भयानक सूरत देखकर बेला घबरा-सी गई किंतु घबराहट को मुस्कान में दबाते हुए बोली- 'बाबा आशीर्वाद दो कि पहली ही फिल्म मुझे उन्नति के शिखर पर ले जाए।'

उस मौन वातावरण को फिर तीनों की हंसी ने तोड़ दिया और तीनों मोटर-कार के पास जा रुके। आनंद उन्हें देखता रहा। तीनों ने आपस में कुछ खुसर-फुसर की और फिर भिखारी की ओर देखा।

चन्द ही क्षण की बातचीत के बाद सेठ साहब की गाड़ी बेला को लिए फाटक से बाहर चली गई। हुमायूं आनंद के पास जाकर उसे ध्यानपूर्वक देखने लगा। आनंद ने मुँह दूसरी ओर फेर लिया।

'कौन हो तुम?' हुमायूं ने नम्रता से पूछा।

'तुम्हें इससे क्या' अपनी उंगलियों को तोड़ते आनंद ने उत्तर दिया।

'तुम पर तरस आ गया - सोचा तुम्हारी कुछ सहायता कर दूं।'

'क्या फिल्म कंपनी में काम दिलवा दोगे?' वह बड़बड़ाया।

'इसीलिए तो तुम्हारे पास आया हूँ - जानते हो ये कौन थे - हमारी कंपनी के मालिक और हमारी फिल्म सपेरन की हीरोईन बेला।' बेला का नाम सुनते ही उसने मुँह हुमायूं की ओर फेर लिया और उसकी आँखों में देखने लगा, 'मुझे एक पागल भिखारी की खोज है - थोड़े ही समय का सीन है - हीरोईन का गला दबाना है-’

'गला-’ इसके साथ ही आनंद अपनी उंगलियों को अंधेरे में चलाने लगा। हुमायूं ने उसे यों केकड़े के समान उंगलियाँ चलाते देखा तो बोला- 'तुम तो अभी से एक्टिंग करने लगे।'

'हाँ, हाँ - मैं उसका गला दबा दूँगा - उसे जान से मार दूँगा।'

'बाबा जान से नहीं मारना - वरना हम सब जेल में होगे और तुम फांसी पर - यह तो एक्टिंग है - कल तुम्हें समझा देंगे - यहाँ आ जाना - पैसे भी अच्छे दिलवा दूँगा।'

हुमायूं ने जेब से अपने नाम का एक कार्ड निकालकर उसे दिया और लंबे डग भरता दूसरी मोटर गाड़ी की ओर बढ़ गया।

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