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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'हाँ बेला, साढ़े पाँच होने को आए... चाय तैयार है क्या?'

'जी चाय भी और मैं भी?' 'कहीं बाहर जाने का विचार है क्या?'

'जी नहीं।'

'तो फिर?'

'आपको शुभ सूचना सुनाने को-’

'ओह! सुनूं तो क्या है?'

'यों नहीं! पहले चलकर हाथ-मुँह धो लीजिए, फिर कहूंगी।'

'चलो, शुभ सूचना है तो धीरज का घूंट भर ही लेते हैं।'

जब दोनों चाय की मेज पर आमने-सामने बैठे तो दोनों की आँखों की पुतलियां नाच रही थीं। वे एक-दूसरे से कुछ कहना चाहते थे। बेला ने चाय बनाई और प्याला बढ़ाकर आनंद के सामने रख दिया। एक घूंट चाय पीते हुए आनंद ने पूछा- 'अब कहो क्या सूचना है?'

'हमारा भाग्य खुल गया है। अब हमारा जीवन बदल जाएगा।'

'वह कैसे? क्या कोई लॉटरी मिली है?'

'जी लॉटरी ही समझिए।' इसके साथ ही बेला ने एक लंबा लिफाफा आनंद के सामने कर दिया। आनंद ने कांपते हुए हाथों से उसे खोला और पढ़ने लगा। कमरे की सब चीजें उसके सामने घूमने लगीं। माथे पर पसीना फूट आया। उसे प्रतीत हुआ जैसे किसी ने उसे बर्फ की सिल्लियों में दबा दिया हो। पत्र को मेज पर रखते उसने कठिनाई से कहा-'तो आज तक तुमने मुझसे छिपाए रखा।' उसकी जुबान सूख रही थी, वह चाहता था कि एक घूंट चाय और गले में उतार ले परंतु पी न सका।

'यही सोच रखा था कि सफल होने पर बताऊँगी-किंतु यह चिंता क्यों?' 'बेला तुम्हारी यह बात मुझे भायी नहीं - यह खेल अब यहीं बंद होना चाहिए।'

'वाह' आप भी खूब हैं। दस हजार - इतना धन और उसे ठुकरा दूँ।'

'हाँ - हमें ऐसा धन नहीं चाहिए।'

'यह मुझसे न होगा। जरा सोचिए तो पहला ही चांस मुझे कहाँ ले जाएगा।' 'मुझे उस ऊँचाई की आवश्यकता नहीं जहाँ पहुँचकर तुम्हें फिर जमीन पर गिरना पड़े।'

'जरा सोचिए तो, सौभाग्य हमारा द्वार खटखटा रहा है और हम कानों पर हाथ धरे सुनते रहें - भला सारा जीवन इस थोड़े से वेतन में क्या होगा।'

'बहुत कुछ - परिश्रम के ये चंद सिक्के उस धन से कई दर्जा अच्छे हैं जो अपने मान और सौंदर्य की प्रदर्शनी में बनाए जाएँ - यह वेतन थोड़ा सही परंतु फिर भी बहुत है। अपने से अमीर लोगों को देखने से परेशानी तो होती है। यदि मन को सांत्वना देनी हो तो उन लाखों गरीबों की ओर देख लिया करो जिन्हें सवेरे से शाम तक काम करने पर भी पेट भर खाना प्राप्त नहीं होता।'

बेला चुप बैठी रही। आनंद चाय छोड़कर चला गया। उसे बेला की यह बात बिल्कुल न भायी थी - सामने बंबई से आया हुआ वह पत्र था जो हुमायूं वाली फिल्म कंपनी के सेठ ने लिखा था - पहली ही फिल्म में हीरोईन का कांट्रेक्ट दस हजार रुपया - केवल हस्ताक्षर करने की देर थी और रुपया उसके पांव चूमने आ रहा था।

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