ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
भुवन उसकी तीखी दृष्टि पर कुछ चौंका, पर सहज भाव से ही बोला, “हाँ, मैं तो आता हूँ कि थोड़ी देर के लिए जीवन के भरपूर प्रवाह में अपने को डाल सकूँ-मुझे तो हमेशा यह डर रहता है कि कहीं तटस्थता के नाम पर मैं बिल्कुल दूर ही न जा पड़ूँ। यहाँ बैठ कर अपने को मानवता का अंग मान सकता हूँ - उसके समूचे जीवन का स्पन्दन अनुभव कर सकता हूँ।”
“लेकिन, डाक्टर भुवन, काफ़ी हाउस में मानवता का जो अंश आता है उसका जीवन मानवता का जीवन नहीं है। वह तो - वह तो।” रेखा के स्वर में थोड़ा-सा आवेश आ गया-“वह तो केवल एक भँवर है, वह भी बहुत छोटा-सा, और जीवन का प्रवाह।” वह सहसा चुप हो गयी; फिर बोली, “और मानवता क्या है? मुझे तो लगता है, जब आप मानव से हट कर मानवता की बात सोचने लगते हैं, तभी आप जीवन से दूर चले जाते हैं, क्योंकि जीवन मानव का है, मानव यथार्थ है, मानवता केवल एक उद्भावना - एक युक्ति - सत्य।”
भुवन ने कुछ संकुचित होकर कहा, “आप शायद ठीक कहती हैं। लेकिन मानवता न सही, जीवन की बात जब मैं कहता हूँ, तब अपने जीवन से बड़े एक संयुक्त, व्यापक, समष्टिगत जीवन की बात सोचता हूँ - उसी से एक होना चाहता हूँ - अगर वह बहुत बड़ा प्रवाह है, तो उसकी धारा को बाँहों से घेर लेना चाहता हूँ - या वह छोटे मुँह बड़ी बात लगे तो कहूँ कि उस पर एक पुल बाँधना चाहता हूँ चाहे क्षण-भर के लिए” यहाँ वह रुक गया, क्योंकि उसे लगा कि वह बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है, और रेखा के चेहरे पर भी उसने एक हल्की-सी आमोद की मुस्कराहट देखी। “आप हँसती हैं? बात भी शायद हँसी की है - काफ़ी हाउस में बैठ कर जीवन की नदी पर पुल बाँधने की बात तो अफ़ीमची की पिनक की बात है।”
“नहीं, डाक्टर भुवन, सच कहूँ तो मुझे आप से थोड़ी ईर्ष्या ही हो रही थी। काफ़ी हाउस की तो बात ख़ैर छोड़िए, वह तो एक प्रतीक बन गया जिसके सहारे हम जीवन ही के प्रति अपने दृष्टिकोण व्यक्त कर रहे हैं। इसलिए यह तो मुझे नहीं लगता कि हम यों ही बड़ी बातें कर रहे हैं। पर जीवन की नदी पर सेतु बाँधने की कल्पना कर सकना ही इतनी बड़ी बात है कि मुझे ईर्ष्या होती है।”
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