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नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


वकील ने कहा था कि जहाँ तक तलाक़ की दरख़ास्त के कारणों की बात है, उचित कारण सब दूसरी तरफ़ हैं : न्यायतः रेखा ही दरख़ास्त दे सकती है क्योंकि उत्पीड़ित पक्ष वही है, और अगर वह नहीं देती तो उसकी मर्ज़ी है। पर हेमेन्द्र किसी तरह छुटकारा चाहता है, तो यही तरकीब हो सकती है कि वह धर्म-परिवर्तन कर ले और फिर रेखा से भी कहे, उसके इनकार करने पर तलाक की दरखास्त दे...यह बताकर उसने कहा था, “मैं मानकर चल रहा हूँ कि आप दोनों छुटकारा चाहते हैं, नहीं तो अगर वह न चाहती हों और धर्म-परिवर्तन करने को तैयार हों तो आप कुछ नहीं कर सकते-यानी ऐसे स्मूथली नहीं हो सकता - फिर तो आपको ऐसे आरोप उन पर लगाने पड़ेंगे जो सच होने पर भी कोई स्त्री आसानी से न मानेगी - और झूठ हो तब तो...और यह तो सवाल ही दूसरा है कि वह कितनी क्रूरता होगी।”

हाँ, वकील ने कोई मुरव्वत नहीं की थी - एकदम बेलाग बात की थी...। वह ठीक ही था, पर यह पराधीनता उसे अखर रही थी। वह मनमानी का आदी है; इतनी छोटी-सी बात के लिए उसे रेखा का मुँह जोहना पड़ेगा - वह चाहेगी तो तलाक़ होगा, न चाहेगी तो नहीं - यह स्थिति उससे सही नहीं जा रही थी...। रेखा बाधा नहीं देगी, वह जानता है; फिर उस सूरत में जब मुक्ति देने में उसे स्वयं भी तो मुक्ति मिलेगी - यद्यपि यह भी वह जानता है, रेखा को कानूनी मुक्ति की परवाह नहीं है, वह किसी भीतरी बन्धन से बद्ध या मुक्ति से मुक्त होगी; और वह अब भी अपने को इतना मुक्त समझती होगी कि कानून की बन्दिशों का बोझ उस पर न हो। यह सब ठीक है, पर क्यों वह रेखा पर निर्भर करने को लाचार है? इससे तो अच्छा होता कि वह यही कह कर तलाक़ माँगता कि रेखा दुराचारिणी है - वह उस हालत में भी सफ़ाई देने न आती अहंकारिणी, पर उसमें उसकी मुँहजोही तो न होती!

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