लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

390 पाठक हैं

व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


कभी वह उठकर बाहर निकल आता, क्षण-भर बारिश को देखता जिसकी बूँदें आलोक के वृत्तों में आकर थोड़ी देर के लिए चमक जातीं और फिर अँधेरे में खो जातीं, मानो वह बारिश उसी वृत्त के एक सिरे पर न-कुछ से पैदा होती हो और दूसरे सिरे पर न-कुछ में विलीन हो जाती हो - न ऊपर बादल से उसका कोई सम्बन्ध हो, न नीचे पृथ्वी से...फिर वह फेल्ट उतार कर कोट में छिपा लेता; मुँह को बूँदों की सूक्ष्म बरछियों के प्रति समर्पित कर देता, और बारिश में ही घर की ओर चल पड़ता।

9


रात के दस बजे थे। दिन-भर वह घर नहीं गया था। भीगता हुआ वह घर पहुँचा, बच्चे तो सो चुके थे, सोने के कमरे में प्रकाश था और वहाँ उसकी पत्नी सिलाई लिये बैठी थी। उसे आता देखकर वह उठी; धीरे से बोली, “हाय, सारे कपड़े भीग गये”, और लपक कर तौलिया, एक धोती, कमीज़, पाजामा ले आयी। दबे स्वर में, यथासम्भव उलाहने का भाव उसमें न आने देने का यत्न करते हुए, उसने कहा, “रोज भीग आते हैं। कहीं सर्दी-वर्दी लग गयी तो?”

चन्द्र कपड़ों-वपड़ों से परे हट कर तिपाई पर हाथ और कमर टेकता हुआ बोला, “तो क्या, घर रहूँगा तो तुम्हें सेवा का मौका मिलेगा।”

पत्नी ने अनिश्चय से उसके चेहरे की ओर देखा; क्या वह व्यंग्य है या हँसी? पर चन्द्र का चेहरा सूना था, दोनों में से कोई भाव उस पर नहीं था। वह साहस करके थोड़ा मुस्करायी और बोली, “न, सेवा ऐसे भी जितनी चाहिए कराइये।” फिर रुककर बोली, “अच्छा कपड़े तो बदल लीजिए, फिर मैं खाना लाऊँ।”

“नहीं कौशल्या, भूख नहीं है। और मैं थक भी गया हूँ।” कहते-कहते उसने हलकी-सी जँभाई ली।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai