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नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


एक अंग्रेजी के लेक्चरर जिन्होंने कभी कुछ लिखा नहीं था पर अपनी सर्वसंहारी मौखिक आलोचनाओं के कारण प्रगतिशील लेखक समुदाय के अगुआ माने जाते थे; एक उर्दू के शायर, जो प्रायः नौ-साढ़े नौ बजे तक वहीं जमे रहते थे क्योंकि उस समय कुछ गोरी लड़कियाँ डिनर के या सिनेमा के बाद काफ़ी पीने वहाँ आया करती थीं, उनके जाते ही शायर साहब भी माँगा हुआ सिगार चुक जाने के कारण जेब से बीड़ी निकाल कर सुलगाते और उठकर चल देते; स्थानीय हिन्दी दैनिक के एक सहायक सम्पादक, जो बराबर इस मत का प्रचार करते थे कि युद्ध में इंग्लैण्ड हार जाएगा और उसके बाद लड़ाई में कमजोर हुए जर्मनी को भी हरा कर रूस भारत को आजाद करेगा; दो-एक और ऐसे व्यक्ति, जिनके बारे में चन्द्र यही जानता था कि वे 'प्रमुख लिटरेरी आदमी' हैं, पर किस लिटरेरी क्षेत्र में प्रमुख हैं यह नहीं, न किसी की किसी प्रकाशित रचना का जिक्र कभी हुआ था...। यों शीघ्र ही एक विराट् विश्व-लेखक-सम्मेलन करने की बात प्रायः हुआ करती थी जिसमें भारत के लेखक तो ख़ैर होंगे ही, रूस से भी डेलीगेशन बुलाया जाएगा...। इस दल में बैठकर चन्द्र कई एक नये शब्द और पद सीख गया था, और कई परिचित शब्दों का अर्थ-विपर्यय भी उसने अपनी बोलचाल में लक्ष्य किया था। और यह भी वह देख रहा था कि वह अब व्यक्तियों की बात सोचता है तो विशिष्ट इकाइयों के रूप में कदाचित् ही; सदैव कोई जातिवाचक विशेषण उसके साथ आता ही है-यहाँ तक कि उसे लगता, स्वयं अपने को वह 'मैं, चन्द्र' न कह कर कहीं 'वह बुर्जुआ पत्रकार चन्द्रमाधव' न कहने लग जाये! कभी वह उसे अच्छा भी लगता - इस प्रकार वह वैयक्तिकता से परे जा सकता है जो सिद्धि है; निर्वैयक्तिक हो सकना, निवैयक्तिक रूप से घृणा कर सकना, बिना दर्द के सब कुछ का तिरस्कार कर सकना - कितना अच्छा होगा वह! तटस्थता-संन्यास-केवल अलग, उदासीन हो जाना - उहुँक, वह गलत है, संन्यास और निवृत्ति-मार्ग केवल सामन्तवादी परम्परा की एक विकृति है, कर्मच्युति का एक बहाना, एक प्रकार का नशा; इनसान एक्टिविस्ट हो, पर निर्वैयक्तिक; घृणा करे, तिरस्कार करे, एक निर्वैयक्तिक रेवोल्यूशनरी घृणा के साथ-वर्ग-मुक्त हो, पीड़ा-मुक्त हो, इस डिकेंडेंट, रुग्ण, ह्रासशील समाज से और स्वयं अपने-आप से बाहर होकर इसके सब मानों-प्रमाणों को तोड़ गिराये, इसकी मान्यताओं को अमान्य कर दे...। हो, किन्तु व्यक्ति न हो, मनुष्य न हो, एक शक्ति हो, एक नीति मुक्त, स्वैर-तन्त्र, सहस्र-शीश, कोटि-बाहु, अजस्र-वीर्य जैविक प्रक्रिया का एक स्फुरण...।

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