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आचार्य श्रीराम शर्मा >> क्या धर्म क्या अधर्म

क्या धर्म क्या अधर्म

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9704
आईएसबीएन :9781613012796

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धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है।


दाम्पत्य जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए? इसका उत्तर समाजशास्त्र के अन्तर्गत होगा, विवाहित स्त्री-पुरुष यदि एक-दूसरे से सन्तुष्ट न रहें तो उनमें कलह पैदा होगा और कलह पड़ोसियों पर बुरा प्रभाव डालेगा एवं संतान को घृणास्पद बनावेगा। ऐसी संतान भार रूप ही होगी। समाज की शान्ति और सुव्यवस्था इसी पर निर्भर है कि स्त्री-पुरुष आपस में संतुष्ट रहें, एक-दूसरे से प्रेम रखें। पतिव्रत और पत्नीव्रत का पूर्ण रूप से पालन किया जाय। दुराचार की कोई इच्छा तक न करे। यदि एक व्यक्ति दुराचार की इच्छा करता है और अपनी वासना के लिए दूसरे को तैयार कर लेता है तो उन दोनों के चोर विचार दूसरों में वैसी ही भावनाऐं उपजाते हैं। यह अवांछनीय सम्बन्ध जब प्रकट होते हैं तो घृणा, द्वेष, अपमान, तिरस्कार आदि के भाव पैदा होते हैं। जिससे समाज का बड़ा अनिष्ट होता है। यह बातें बतलाती हैं कि समाजशास्त्र की दृष्टि से स्त्री-पुरुषों को पतिव्रत और पत्नीव्रत पालन करना चाहिए, एक स्त्री का एक ही पुरुष से सम्बन्ध होना चाहिए।

परन्तु उपरोक्त नियम अपरिवर्तनशील नहीं हैं। पर्वतीय प्रदेशों में जहाँ लड़कियाँ कम और लड़के अधिक उत्पन्न होते हैं बहीं ऐसे रिवाज पाये जाते हैं कि एक पिता के जितने पुत्र हों वे सम्मिलित रूप से एक लड़की के साथ विवाह कर लेते हैं। इसी प्रकार वह एक स्त्री चार-छ: पति वाली होती है। उन प्रदेशों में यह प्रथा सर्वथा धर्म सम्मत है। पाँच पाण्डवों की एक स्त्री द्रौपदी का होना प्रसिद्ध है। इस प्रकार जिन प्रदेशों में स्त्रियाँ अधिक और पुरुष कम होते हैं वहाँ एक पुरुष को कई विवाह करने की अनुमति है। इस्लाम धर्म वाले मानते हैं कि एक-एक पुरुष को चार स्त्रियाँ तक रखने की ईश्वरीय आज्ञा है। ईसाई सभ्यता के अनुसार दाम्पत्य सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य स्त्री-पुरुषों को स्वयं करना होता है। इसलिए वे बहुतों में से एक को चुनते हैं। इस चुनाव कार्य में यदि कई-कई सम्बन्ध बिगाड़ने पड़ते हैं तो उस समाज के अनुसार यह कार्य कुछ भी अनुचित नहीं है। सन्तानोत्पादन को अभाव या वंश मर्यादा का नाश होने पर प्राचीन पुस्तकों में कुछ छूटें दी गई हैं जैसा कि महाभारत के कथनानुसार व्यासजी को वंश रक्षा के लिए पर-स्त्री गमन निषेध का अपवाद उपस्थित करना पड़ा था। यह छूटें समाज विभिन्नता, स्थिति विशेष और कारण विशेष के कारण कभी-कभी होती हैं और साधारणत: मनुष्य जाति का सुरक्षा मार्ग यही है कि दाम्पत्य जीवन आदर्श हो और एक-दूसरे से सर्वथा सन्तुष्ट रहें।

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