ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रनबीर–अब तुम्हें अपने घर लौट चलना चाहिए।
कुसुम-नहीं-नहीं, बिना दुष्ट बालेसिंह की फंसाए मैं घर न जाऊंगी, और इसके लिए जो कुछ बंदोबस्त किया गया है आप जानते ही होंगे।
रनबीर-हां, मैं तो सब कुछ जानता हूं। वह कुछ ऐसा ही मौका था कि धोखे में उसने मुझे फंसा लिया, सो भी तुम्हारे मिलने की खुशखबरी अगर वह मुझे न देता तो जरूर अपनी जान से हाथ धोता, पर अब मैं उसे कुछ भी नहीं समझता, उसके घमंड तोड़ भी चुका हूं!
कुसुम–(मुसकुराकर) जी हां, मैं सुन चुकी हूं–तो भी मैं चाहती हूं कि घर पहुंचने के पहले बालेसिंह पर कब्जा कर लूं।
रनबीर–खैर, अगर यही मर्जी है तो दो ही चार दिन में तुम्हारे इस हौंसले को भी पूरा किए देता हूं।
कुसुम–हाय उस कबख्त ने मेरे साथ जो कुछ सलूक किया जब मैं याद करती हूं कलेजा पानी हो जाता है! (आंसू की बूंदे गिराकर) हाय हाथ, अगर आज मेरे बाप या मां ही होती तो यह नौबत क्यों पहुंचती? (कुछ सोचकर) नहीं-नहीं, मुझे इसकी भी शिकायत नहीं है, क्योंकि...
रनबीर–(कुसुम का नर्म पंजा अपने हाथी में लेकर) है, यह क्या? बस–बस, देखो तुम्हारी आंसू की बूंदे मेरे दिल के साथ वह बर्ताव कर रही हैं जो बंदूक से निकले हुए छर्रे गुलाब की डाल पर बैठी हुई बेचारी बुलबुल के साथ कहते हैं!
कुसुम–(आंसू पोंछकर) नहीं-नहीं, ऐसा न कहो, बल्कि यही कहो कि ईश्वर करे ये आंसू की बूदें बालेसिंह के लिए प्रलय का समुद्र हो जिसमें उसकी उम्र की टूटी हुई किश्ती का कहीं पता भी न लगे!
देर तक बातचीत होती रही। आज का दिन इन दोनों आशिक माशूकों के लिए कैसी खुशी का था इसे वही खूब समझ सकता था जिसे कभी ऐसा मौका पड़ा हो। जिसे जी प्यार करता हो, जिसके मिलने की उम्मीद में तनोबदन की सुध भुला दी हो, जिसके मुकाबले में दुनिया की कुल नियामतें तुच्छ मालूम होती हों, जिसके बिना जिंदगी दुश्वार हो गई हो, वह अगर मिल जाए तो क्या खुशी का कुछ ठिकाना है? मगर दुनिया भी अजीब बेढब जगह है, यहां रहकर खुशी से दिन बिताना किसी बड़े ही जिंदादिल का काम है, नहीं तो ऐसा कौन है जिसे किसी-न-किसी बात की फिक्र न हो, किसी-न-किसी तरह का गम न हो, किसी-न-किसी किस्म का दुःख न हो, सच पूछिए तो सुख के मुकाबले में दुःख का पल्ला हरदम भारी ही रहता है, अगर किसी को एक तरह की खुशी है तो जरूर दो तरह का रंज भी होगा। यहां तो जिनका दिल मजबूत है, या जो दुनिया को सराय समझकर अपना दिन बिता रहे हैं, वे ही मजे में है। और सभी को जाने दीजिए, आशिक माशूकों के लिए तो दुःख मानों बांटे पड़ा है, यों जो कहिए उन्हीं के लिए बनाया ही गया है।
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