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कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

देखिए आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा है, निद्रादेवी ने निशाचर छोड़ सभी जानदारों पर अपना दखल जमा रखा है और थोड़ी देर के लिए सभी के दिल से दुःख-सुख का दौर हटा उन्हें बेहोश करके डाल दिया है। इस समय वही जाग रहा है, जो चोरी की धुन में वा छप्पर कूद जाने या सेंध लगाने की फिक्र में है, या उसी की आंखों में नींद नहीं है जो किसी माशूक के आने की उम्मीद में चारपाई पर लेटा-लेटा दरवाजे की तरफ देख रहा है, जरा खटका हुआ और दिल उछलने लगा कि वह आए, जब किसी को न देखा एक लंबी सांस ली और समझ लिया कि यह सब हवा महारानी की शैतानी है। हां, खूब याद आया, इस समय उस बेदर्द की आंखों में भी नींद नहीं है जो अपना दुश्मन समझकर किसी बेदिल बेचारे का नाहक ही खून करने का मौका ढूंढ़ रहा है, जरूर ऐसा ही है क्योंकि यहां भी ऐसा ही कुछ उपद्रव हुआ चाहता है।

इन सभी के सिवाय रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी की मुहब्बत और लालच भरी आंखों में अभी तक नींद का नाम निशान नहीं है। एक को देख दूसरा मस्त हो रहा है, इस चांदनी ने इन दोनों के चुटीले दिलों को और भी चरका दिया है, हाथ में हाथ दिए झोंपड़ी के बाहर पत्तों की चारदीवारी के अंदर टहल रहे हैं, दीन दुनिया को भूले हुए है, इस बात का गुमान भी नहीं कि अभी थोड़ी ही देर में कोई बला ऐसी आनेवाली है कि जिसके सबब से यह सब सुख सपने की संपत्ति हो जाएगा और रोते-रोते आंखों को सुजाना पड़ेगा।

लीजिए, अब अंधेरा हुआ ही चाहता है। ये दोनों धीरे-धीरे टहलते हुए पूरब तरफ की टट्टी तक पहुंचे जहां कोने की तरफ सब्ज टट्टी की आड़ में सब्ज ही कपड़ा पहने मुंह पर नकाब डाले एक आदमी छिपा खड़ा है। न मालूम कब टट्टी फांदकर आ पहुंचा, किस धुन में लगा है और इन दोनों की तरफ टकटकी बांधे गजब भरी निगाहों से क्यों देख रहा है?

देखिए ये दोनों हद्द तक पहुंच गए और उस दुष्ट का मतलब भी पूरा हुआ। जैसे ही दोनों ने लौटने का इरादा किया कि वह हरामजादा इन पर टूट पड़ा और अपनी बिलकुल ताकत खर्च करके पीछे से रनबीरसिंह के सर पर ऐसी तलवार लगाई कि वह चक्कर खा जमीन गिर पड़े। जब तक चौंकी हुई कुसुम कुमारी फिर कर देखे तब तक तो वह टट्टी के पार हो गया और बाहर से ‘चोर चोर! धरो धरो!!’’ की आवाज आने लगी।

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